हम आप क्या कहेंगे
जग का हाल सुनता हूँध्यान लगाकर सुनो तुम।
मानवता का दृश्य भी देखो
मानव ही दिखला रहा है।।
क्या पाया और क्या खोया है
लेखा-जोखा जग का रखता है।
नफा-नुकसान का हिसाब-किताब भी
ये वा खूबी प्रस्तुत करता है।
और खुदको श्रेष्ठ सावित करने
नये नये हथकंडे अपनाता है।
और मानवता की हद से भी
बहुत नीचे चला जा रहा है।।
करता नही किसी का भी देखो
ये अभिमानी मानव सम्मान।
अभिमान के चक्कर में पड़कर
कितना बेशर्म बन सकता है ये।
अपनी सोच के आगे देखो इसको
नही किसी की सुनता है ये।
पर अंत अति होता है एक दिन
जैसे हुआ रावण कंश का देखो।।
अज्ञानी और अनपढ़ हो राजा तो
हाल राज्य का बुरा ही होगा।
खुद की अकुशलता का फल
जन-मानस को भूगतना पड़ेगा।
दर-दर पर जाकर देखो इनको
कैसे भीख मांगना पड़ रहा है।
पर फिर भी खुदको ये जनाब
सफल राजा बता रहे है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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