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श्रीजी महिमा अपरंपार

श्रीजी महिमा अपरंपार

मृदुल मधुर नेह मनोरमा,
साक्षात लक्ष्मी अनुपमा ।
पर्याय कान्हा स्त्री रूप,
अंतर शक्ति परम रमा ।
हर कदम गोपाल सानिध्य ,
आध्यात्म मैत्री स्नेह आगार ।
श्रीजी महिमा अपरंपार ।।


सफलता समृद्धि पूर्णता संग,
अथाह वैभव संज्ञा संबोधन ।
भू देवी सरित विराजा पद,
अलौकिक ओज अवबोधन ।
राधिका किशोरी माधवी ,
केशवी राधा शुभ नाम अपार।
श्रीजी महिमा अपरंपार ।।


मात पिता वृषभानु कीर्ति,
अवतरण रावल पुनीत धरा ।
अप्रतिम साधना फल मातु ,
कमल प्रसून पट सौम्य भरा ।
कन्हाई प्रीत रीत बरसाना ,
सृष्टि पटल आनंद आधार ।
श्रीजी महिमा अपरंपार ।।


मंत्रमुग्ध दर्श श्याम छवि ,
भाव विभोर सुन बांसुरी ।
प्रीति पराकाष्ठा शीर्ष उत्तम,
हर्षित गर्वित त्रिलोक धुरी ।
मुखार बिंद जप राधे राधे ,
उर भाव मंगल स्वप्न साकार।
श्रीजी महिमा अपरंपार ।।


कुमार महेन्द्र(स्वरचित मौलिक रचना)
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