हिन्दू कैलेंडर में तिथियों और देवताओं का महत्व होता है
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
हिन्दू कैलेंडर को पंचांग भी कहा जाता है, यह कैलेंडर कालगणना प्रणाली है। यह एक चंद्र-सौर कैलेंडर भी कहलाता है जिसमें कई क्षेत्रीय विविधताएँ शामिल हैं, जिसमें चंद्र दिवस, सौर दिवस, चंद्र महीना, सौर महीना, तारामंडल के संबंध में सूर्य और चंद्रमा की चाल और अन्य खगोलीय रूप से समय-अवधि की जानकारी रहता है। हिन्दू कैलेंडर में चैत, वैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण (सावन), भद्र (भादो), अश्विन, कार्तिक, अगाहाना (अगहन), पौष (पुष), माघ एवं फाल्गुन महीना होता हैं। भारतीय संस्कृति एवं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी शुभ कार्य के लिए, नये निर्माण या नए व्यवसाय अथवा उद्योग, शोरूम, दुकान आदि का शुभारंभ करने के लिए, या फिर शादी-विवाह के दिन के लिए, शुभ मुहूर्त देखना अनिवार्य होता है। वहीं तिथि को भी देखा जाना और उस तिथि के स्वामित्व वाले देवता के बारे में भी जानना महत्वपूर्ण होता है।
ज्योतिष शास्त्रानुसार, चन्द्रमा उदय तथा अस्त होता है उसे तिथि कहते हैं। अमावस्या को सूर्य-चन्द्रमा का संगम होने के पश्चात् जब चन्द्रमा सूर्य से 12 अंश दूर चला जाता है, तब तक प्रतिपदा रहती है। इसी प्रकार चन्द्रमा बढ़ते-बढ़ते जब 180 अंश तक पहुंच जाता है, तब पूर्णिमा होती है। वैसे सर्वविदित है कि तिथियां 15 दिन की होती हैं, वह है प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा ये शुक्ल पक्ष की तिथियां होती हैं। कृष्ण पक्ष में भी तिथियों का यही नाम रहता है, केवल अंतिम तिथि पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या होता है।
ग्रहों में मुख्य सातों ग्रहों के स्वामी जैसे सूर्य के स्वामी शिव, चन्द्र के स्वामी दुर्गा, मंगल के स्वामी कार्तिक, बुध के स्वामी विष्णु, गुरू के स्वामी ब्रह्मा, शुक्र के स्वामी इन्द्र तथा शनि के स्वामी काल होता हैं। इसी प्रकार हर तिथियों के भी स्वामी देवता होते हैं। शुभ कार्य करने से पहले तिथियों पर भी ध्यान दिया जाता है।
तिथियों की संज्ञा के बारे में जानना भी जरूरी है। जैसे- नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता, पूर्णा - ये प्रतिपदा से पंचमी पर्यन्त, षष्ठी से दशमी पर्यन्त, एकादशी से पूर्णमासी पर्यन्त, तिथियों की संज्ञा है। यानि प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी, नन्दासंज्ञकः द्वितीय, सप्तमी, द्वादशी भद्रासंत्रक तथा तृतीय, अष्टमी, त्रयोदशी जयासंज्ञक तथा चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी रिक्तासंज्ञक, पंचमी, दशमी तथा पूर्णमासी पूर्ण संज्ञक है। ये तिथियां शुक्ल पक्ष में शुभ कार्य लिए अधम, मध्यम, उत्तम तथा कृष्ण पक्ष उत्तम, मध्यम, अधम होती हैं। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अधम, षष्ठी मध्यम, एकादशी उत्तम तथा कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा उत्तम, षष्ठी मध्यम, एकादशी अधम होती हैं।
भद्रादि तिथियों में भी मध्यमादि का ज्ञान होना चाहिए। ये मन्दादि तिथियां क्रम से शुक्र, बुध, मंगल, शनि गुरु के दिन पड़े तो कार्य सिद्ध करने वाली होती हैं, अतः सिद्धा, यह अन्वर्थ नाम है। शुभ तिथियों के बारे में जाना गया है कि गीत, नृत्य, खेती का कार्य, चित्र, उत्सव, गृहादि कर्म तथा वस्त्राभूषण धारण तथा शिल्पादि कर्म में नन्दातिथि शुभ होता है।
विवाह जनेऊ, यात्रा, भूषण पहनना, थवई का काम, कला सीखना तथा हाथी घोड़ा तथा रथकर्म इन सबमें भद्रादि शुभ होता है। फौज के कार्य, युद्ध कार्य, हथियारों के कार्य, यात्रा का उत्सव या गृहादिक कार्य तथा भैषज्य अर्थात् औषध करना, वाणिज्य कर्म - इन कार्यों में जया तिथि शुभ होता है। शत्रु का वध करना, बन्धनादि कर्म करना, शस्त्र चलाना, अग्नि लगाना इन कार्यों में रिक्ता तिथि शुभ होता है यानि मंगल कार्य रिक्ता में कभी नही करना चाहिए। पूर्णा तिथि में जनेऊ, विवाह, यात्रा, राज गद्दी पर बैठना तथा शान्तिकर्म तथा पौष्टिक कार्य करना शुभ होता है।
प्रथमा (प्रतिपदा) के दिन अग्निदेव की उपासना से घर में धन-धान्य, आयु, यश, बल, मेधा आदि की वृद्धि होती है। द्वितीया की तिथि के स्वामी ब्रह्मा होते है। इस दिन किसी ब्रह्मचारी ब्राह्मण की पूजा कर उन्हें भोजन, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। तृतीया तिथि के स्वामी गौरी तथा कुबेर होते है। इनकी पूजा करने में सौभाग्य में वृद्धि होती है। चतुर्थी तिथि को श्री गणेश की पूजा में विघ्न-बाधा दूर होता हैं। पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता हैं। इस दिन नाग पूजा से भय तथा कालसर्प योग का शमन होता है। षष्ठी तिथि के स्वामी कार्तिकेय हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति मेधावी, संपन्न तथा कीर्तिवान होता है। मंगल की दशा हो या कोर्ट-केस हो, उसके लिए कार्तिकेय की पूजा लाभप्रद रहती है। सप्तमी के स्वामी सूर्य हैं। स्वास्थ्य, विशेषकर आंखों की समस्या से पीड़ित व्यक्तियों को इनकी पूजा करनी चाहिए। अष्टमी तिथि के स्वामी रूद्र हैं। इस तिथि में शिव की पूजा करने से कष्ट तथा रोग दूर होते हैं। नवमी के दिन दुर्गा की पूजा करने से यश की वृद्धि होती है। दशमी के दिन यमराज की पूजा करने से बाधाएं दूर होती हैं। एकादशी के दिन विश्वेदेवा की पूजा से भूमि का लाभ होता है। द्वादशी के स्वामी विष्णु हैं। इनकी पूजा करने से सुखों की प्राप्ति होती है। त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव हैं। इनकी पूजा से वैवाहिक सुख मिलता है। चतुर्दशी को, प्रत्येक मास की विशेषकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव पूजा, रूद्राभिषेक करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देना तथा व्रत रखना सुख में वृद्धि करता है और अमावस्या के दिन अपने पितरों की शांति- प्रसन्नता के लिए अन्न-वस्त्र का दान देना तथा श्राद्ध करना लाभप्रद होता है।
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