वीर सुभाष
⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजनदेश हमारा कितना प्यारा,
सबकी आंखों का है तारा ।
वीरता इसके रग-रग में है,
धीरता इसके पग-पग में है।
कर्मवीरों की कर्मभूमि यह,
वीरों की है जन्मभूमि यह।
है इसका इतिहास गवाह ,
कि जब भी कोई आंख दिखाता,
वीरों की भौंहें चढ़ जाता,
दुश्मनों को छक्के छुड़ाता ।
एक बार की बात है भाई ,
फिरंगियों ने अपनी जाल बिछाई।
उसमें फंस गए भारतवासी,
बनकर रह गए वन के वासी ।
अत्याचार जब उनकी बढ़ गई,
भारत माँ तब शिथिल- सी पड़ गई।
किसी कवि ने सत्य कहा है,
कि जब-जब परी विकल होती,
मुसीबत का समय आता,
ऐसे में ना जाने कहाँ से,
सुभाष जैसा वीर चला आता।
भारत मां की तड़प को देख.
वीर सुभाष ने कसम ये खाई,
किं जब तक तन में सांस रहेंगे,
फिरंगियों से हम लड़ते रहेंगे।
वीर सुभाष ने कसम निभाई,
"आजाद हिन्द' नामक फौज बनाई।
फौज ने ऐसी धूम मचाई,
फिरंगियों की नींद उड़ाई ।
छापामारी युद्ध नीति से,
फिरंगियों को मार गिराया ।
भारत की पावन धरती पर,
पहली बार तिरंगा फहराया।
लालकिले पर तिरंगा फहराने को
दिल्ली चलो का नारा दिया।
ईश्वर को ना मंजूर हुआ,
विमान उनका चकनाचूर हुआ।
वीर सुभाष ने मरकर भी,
हमको यह संदेश दिया ।
कि मर-मर कर जीने से अच्छा ,
लड़कर ही मर जाना है।
परतंत्र होकर जीने से तो,
शहीद हो जाना अच्छा है।
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