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एक एक दिन करके उम्र निकलता गया।

एक एक दिन करके उम्र निकलता गया।

उठता हुआ सूरज धीरे धीरे ढलता गया।
जब मुरझाने लगा फूल तब तुम आये।
जब सब कुछ खत्म होचुका था ,तब तुम भाये।
माल निकल चुका था, अब खाली थी दुकान।
अब हकीकत नदारद था, थी केवल झूठी शान।
मुझे फक्र है तुम पर, जो तुम ने इतना चाहा।
झूठी शान वाले मन को, इस तरह निबाहा।
सच है, प्रेम उठती और ढलती उम्र नहीं जानता।
वह केवल दिल को देखकर , है अपना मानता।
अपने प्रेमी के लिए दिल पुनः यौवन हो जाता है।
मुरझाया हुआ फूल, फिर से चटख खिल जाता है।
अतीत मात्र अफसोस और केवल बुरा सपना है।
जी जान से चाहने वाला सच्चा प्रेमी ही अपना है। 
 जय प्रकाश कुवंर
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