जिंदगी
जितेन्द्र नाथ मिश्र
न गिले न शिकवे शिकायत करता हूं
हां बस केवल तुमसे प्यार करता हूं ।
चाहता हूं डूब जाऊं उस अनमोल सागर में
जिसे तुमने अपने दिल में कैद कर रखा है।
तू मेरी जिंदगी है तेरे साथ जीना चाहता हूं
प्रेम का रसास्वादन भी सदैव करना चाहता हूं।
तू बहती है सुख दुःख दो किनारों के बीच
मैं दोनों किनारों का आनंद लेना चाहता हूं ।
तू सदैव वादियों में अमृत बरसाती रहती हो
एक वो है जो नफरत का विष घोलना चाहता है।
तू हमेशा हर पल मेरा सहारा बन खड़ी रही
मैं मौत से लड़कर भी तुझे पाना चाहता हूं।
कोई हमेशा मेरी राह में कांटे बिछाते रहता है
तू कांटे को चुनकर फूल बरसाया करती हो।
जितेन्द्र नाथ मिश्र
कदम कुआं, पटना।
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हां बस केवल तुमसे प्यार करता हूं ।
चाहता हूं डूब जाऊं उस अनमोल सागर में
जिसे तुमने अपने दिल में कैद कर रखा है।
तू मेरी जिंदगी है तेरे साथ जीना चाहता हूं
प्रेम का रसास्वादन भी सदैव करना चाहता हूं।
तू बहती है सुख दुःख दो किनारों के बीच
मैं दोनों किनारों का आनंद लेना चाहता हूं ।
तू सदैव वादियों में अमृत बरसाती रहती हो
एक वो है जो नफरत का विष घोलना चाहता है।
तू हमेशा हर पल मेरा सहारा बन खड़ी रही
मैं मौत से लड़कर भी तुझे पाना चाहता हूं।
कोई हमेशा मेरी राह में कांटे बिछाते रहता है
तू कांटे को चुनकर फूल बरसाया करती हो।
जितेन्द्र नाथ मिश्र
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