नाप तौल कर मुस्कानें
राजमणि मिश्रनाप तौल कर मुस्कानें सरे बाज़ार बिकती हैं
गज़ब हैरानी है,
तुम कह कहे लुटा रहे कबीरा!
शहर शहरात में इस तरह उन्मुक्त हँसना
देहाती जाहिल और गँवार होने की निशानी है
क्या तुम्हें पता नहीं कि
तुम जैसे मनई के लिये
जिसे उधो को लेना न माधो को देना है
खुल कर हँसना तख्ते ताऊस और सरे दरबार का
मजाक उड़ाना है
चली आ रही शान औ शौकत को खारिज करना है
और तुम हो कि बेफिक्र हँसे जा रहे हो
जब शहर में आए हो
तो यहाँ के तौर तरीके सीखो
जल जलपान की जगह ब्रेकफास्ट करना सीखो
असभ्य की तरह बात बात में खीसें मत निपोरा करो--------- कबीरा
देखो भाई कबीरा!
यह तुम्हारा चौरा नहीं है
यह शहर शहरात है
इसलिए दिल मिले या न मिले
हाथ मिलाते रहो कबीरा
हँसी आए न आए
तब भी
थोड़ी थोड़ी ब त्ती सी
दिखाते रहो कबीरा
हाँ ,, हाँ
समझा करो यारक,,,, बी,,,,,, रा !!
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