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केहू अगुआई, केहू पिछुआई

केहू अगुआई, केहू पिछुआई,

बाकिर मंजिल तक हिम्मत से,
सब कोई पहुंच जाई।।
जब तक ले ठिठुरल रहब,
जब तक ले बैठल रहब ,
मंजिल बहुत दूर पड़ी दिखाई।
देह झार के खड़ा हो जा,
हौसला बुलंद कर ल,
चले के जब ठान लेहब,
मंजिल अपने आप निअराई।।
इ जिनिगी एगो रेस हवे,
अंतिम दिन तक दौड़े के बा,
मन मरले रही से कैसे दौड़ पाई।
मन के जे ना मजबूत करी,
आलसी बन के पड़ल रही,
ओकर हरदम पैर लड़खड़ाई।।
पुरनियां लोग कहत रहल,
भगवान भी ओकरे मदद करेले,
जे आपन मदद खुद करेला।
इ बात एकदम सही हवे,
बहुत लोग एकर फल चखले बा,
एकरा के मत ज‌इह भुलाई।।
दुनिया में जिये खातिर,
बहुत संघर्ष करे के बा।
कुछ पावे के उम्मीद मत छोड़िह,
चलत रह,मेहनत करत रह, हरदम ऐ भाई।
केहू अगुवाई, केहू पिछुआई,
बाकिर मंजिल तक हिम्मत से,
सब कोई पहुंच जाई।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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