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अपनो की कुछ परछाईं

अपनो की कुछ परछाईं

बिछड़ गयी बिन कहे-सुने ,
चलते-चलते हृदय उन्हें
रोज खोजता जाता है ।
कितने शिकवे-गिले भरे थे,
कितनी ममता-दूरी थी ,
हम ना रहेंगे मिलकर एक दिन,
सोच कर मन पछताता है ।
शिकवे मिट गये, दूरी मिट गयी,
सारी राम कहानी गुम ।
आँखो में पानी-ही-पानी,
जीवन की नादानी गुम ।
दिल का जर्रा- जर्रा छल-छल,
परछाईं भी दिखे कहाँ!
चलते-चलते खोज रहे हम
उन अपनो को यहाँ-वहाँ।
====(अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव )
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