तमीज और इंसानियत
ऋषि रंजन पाठकचाहे चढ़ जाओ ऊंचे शिखर पर,
चाहे नाम हो दुनिया के हर खबर पर।
डिग्रियां हों दीवारों पर लटकी,
पर व्यवहार में यदि कमी है झलकी।
तो क्या लाभ उस शिक्षा का,
जो न सिखाए सम्मान का ढंग।
जहां शब्दों में हो केवल कड़वाहट,
और दिल में बस अहं का रंग।
डिग्रियों का अंबार लगा लो,
सुनहरे ख्वाबों का संसार बना लो।
पर यदि शब्द कटु और भाव कठोर,
तो सब ज्ञान व्यर्थ, सब श्रम चौर।
तमीज का दीपक जो जलता नहीं,
इंसानियत का पाठ जो पढ़ता नहीं।
वो ज्ञानी नहीं, बस दिखावा है,
वो जीवन बस इक छलावा है।
इंसान वही जो इंसानियत रखे,
बोल में मिठास, दिल में जगह रखे।
तमीज से बढ़कर कोई तालीम नहीं,
इंसानियत से ऊंचा कोई पद नहीं।
संस्कारों की पूंजी जो पास है,
वही सच्चा ज्ञानी, वही खास है।
वरना बड़े नाम और ऊंचे मुकाम,
बस दिखावा भर हैं, सब हैं विराम।
सच्चा ज्ञानी वही कहलाए,
जो प्रेम के शब्द हर दिल सुनाए।
जो छोटे-बड़े का फर्क मिटाए,हर दिल में इंसानियत उगाए।
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