लिये हाथ में हाथ गए|
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
लिये हाथ में हाथ गए तुम बहुत दूर तक।
आई आँधी हाथ छोड़कर हुए फना तुम,
रहा खोजता,पता नहीं,तुम हुए कहाँ गुम;
व्यंग्य नियति का,रंग चमकता हो जाता फक़।
कभी छलकता छलछल,कभी लुढ़कता मीना,
बाज लवा को जैसे, वैसे आकर छीना ;
कल तक था जो नाच रहा,वह मार रहा झक।
हँसने-रोनेवाले, दोनों का व्यादित मुख ,
काया-छाया जैसे ही जीवन में सुख-दुख;
सुषम-विषम क्रम-अक्रम खेला है यहअनथक।
चलती-रुकती चक्की,क्या रोना-क्या गाना,
लगा रहेगा खोना-पाना, आना-जाना ;
घड़ी चल रही टिक टिक,चले कलेजा धक धक।
दण्ड सुखद है,नहीं चाहिए मुझको माफी,
जितना भी दे दिया,वही है मालिक!काफी;
दुनिया बड़ी कठोर,गए तुम अच्छा बेशक।
लिये हाथ में हाथ, गए तुम बहुत दूर तक।
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