Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

पैसा: आदतें बदलता है, फितरत नहीं

पैसा: आदतें बदलता है, फितरत नहीं

पंकज शर्मा
यह एक सर्वविदित सत्य है कि पैसा मनुष्य के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है, हमें सुविधाएँ प्रदान करता है, और हमें एक निश्चित स्तर की सुरक्षा का अनुभव कराता है। लेकिन क्या पैसा वास्तव में हमें बदल देता है? क्या यह हमारी आत्मा, हमारे अंतर्मन को भी प्रभावित करता है? एक प्रचलित कहावत है, "पैसा इन्सानों की आदत बदलता है, फितरत नहीं।" यह कहावत हमें पैसे के प्रभाव की एक गहरी समझ प्रदान करती है।
"आदत और फितरत में अंतर"

इससे पहले कि हम इस कहावत पर विस्तार से चर्चा करें, यह समझना महत्वपूर्ण है कि 'आदत' और 'फितरत' में क्या अंतर है। आदतें वे व्यवहार हैं जो हम बार-बार करते हैं और जो समय के साथ हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाते हैं। ये बाहरी और परिवर्तनशील हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, पैसे आने से किसी व्यक्ति की जीवनशैली, खान-पान, पहनावा, और खर्च करने का तरीका बदल सकता है। यह उसकी आदतों में बदलाव है।

दूसरी ओर, फितरत किसी व्यक्ति का अंतर्निहित स्वभाव, उसका मूल चरित्र होता है। यह उसके मूल्यों, विश्वासों, सिद्धांतों और दृष्टिकोणों से बनता है। यह आंतरिक और अधिक स्थायी होता है। पैसे के आने से किसी व्यक्ति की फितरत नहीं बदलती। एक उदार व्यक्ति पैसे आने पर और भी उदार हो सकता है, लेकिन एक कंजूस व्यक्ति पैसे आने पर और भी कंजूस हो सकता है। यह उसकी फितरत है, जो पैसे के बावजूद नहीं बदली।

"पैसा और मानवीय मूल्य"

पैसा हमें यह दिखा सकता है कि हम वास्तव में कौन हैं। यह हमारी छिपी हुई प्रवृत्तियों को उजागर कर सकता है। यदि हमारे मूल्य मजबूत हैं, तो हम पैसे का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करेंगे, दूसरों की मदद करेंगे, और समाज में सकारात्मक योगदान देंगे। लेकिन अगर हमारे मूल्य कमजोर हैं, तो हम पैसे का दुरुपयोग कर सकते हैं, स्वार्थी बन सकते हैं, और दूसरों का शोषण कर सकते हैं।

यह कहावत हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है: हमें पैसे के प्रभाव में आकर अपने मूल स्वभाव को नहीं बदलना चाहिए। पैसा एक साधन है, साध्य नहीं। हमें इसका उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए और अपनी मानवीयता को बनाए रखना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि असली खुशी पैसे में नहीं, बल्कि हमारे मूल्यों, रिश्तों और अच्छे कर्मों में है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)

पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ