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हर्गिज़ न तंग होने दो

हर्गिज़ न तंग होने दो|

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)

हर्गिज़ न तंग होने दो जिंदगी का काफिया।
जमाने के सर पे बोल रहा आज माफिया ।
ईमान बेंच कर हुई शुह्रत जो दस्तयाब,
कौड़ी के लिए रुह को नीलाम कर दिया।
दाढ़ी मियाँ की वाह -वाही में चली गई,
अपने को बदल दो तो बदल जायगी दुनिया।
इंसानियत से बढ़के है मजहब नहीं कोई,
मैखान- ए- हस्ती की मुहब्बत है साकिया।
दिख रहा है सामने से जो यहाँ दरवेश,
सच में साथियो,वही सरदारे माफिया।
नफ्रत का जहर क्यों न घुले आज फिजाँ में,
कब्जा जो सियासत पे मुज्रिमों ने कर लिया।
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