दोगले अब सामने आने लगे हैं,
भेड़ की खाल मुँह से हटाने लगे हैं।पल रहे थे घर के भीतर हिमायती,
औकात अब अपनी दिखाने लगे हैं।
हटायी थी 370 धारा काश्मीर से,
नाली के कीड़े बिलबिलाने लगे हैं।
खा रहे मुफ्त की रोटियां और मलाई,
जरा रखी नजर, भूख चिल्लाने लगे हैं।
कह रहे थे हक संसाधनों पर एक का,
एकता हमने दिखाई कुलबुलाने लगे हैं।
भेडिये जो लूटते थे भेड़ की खाल ओढ,
वक्त का पहिया चला तो मिमियाने लगे हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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