अक्सर सुना है
कुछ महिलाओं कोकहते हुये
जी रही हूँ
समझौतों के साथ
घुट रही हूँ
कतरा कतरा
संबन्धों को निभाते निभाते
सिमट कर रह गई हूँ
घर की चारदीवारी में।
इसके विपरीत
कुछ महिलाओं को
ध्यान से देखना
और सुनना उनकी बातों को
सुबह से शाम तक
घर के काम में रत
चेहरे पर मुस्कान
सास ससुर परिवार का ध्यान
घर को सजाना संवारना
गुनगुनाते हुये
मुस्कुराते हुए
परिवार रिश्तेदार
तथा पड़ोस के
सुख दुःख में भागीदारी
छोटे बड़े उत्सवों में
हिस्सेदारी निभाती
दिनभर काम की थकान
मगर चेहरे पर
आत्मसंतुष्टि
और मुस्कान।
परिवार में
अनेक सदस्यों के बीच
एक पुरूष भी है
जिसके बस कर्तव्य होते
अधिकार नहीं
दूसरों के दुःख की चिन्ता
सबके सुख के लिये
संघर्षरत
धूप छाँव बरसात
दिन या रात
यहाँ तक कि
एकान्त के क्षणों मे भी
पत्नी द्वारा
दिनभर घर का लेखा जोखा
किसी की दवाई फ़ीस
कपड़े ज़ेवर
अपनों की नाराज़गी
पत्नी की ख्वाहिश
कभी शिकायतें
तो कभी
बहन बेटी के घर
होने वाले शादी विवाह
होने वाले खर्च की चर्चा
जी हाँ
वह दिनभर की थकान के बाद
विश्राम के कुछ पल
अक्सर उड़ाये रखते हैं
उसकी नींद
दिन रात- रातों रात
मगर
चेहरे पर शिकन लाये बिना
रहता वह संघर्षरत
दर्द को दिल में दबाये
करता है प्रयास
सबकी ज़रूरतें पूरी करने का
चेहरे पर लिये मुस्कान
क्योंकि वह पुरूष है
दर्द कह नहीं सकता
आँसू बहा नहीं सकता
डर है उसे
कि कोई कमजोर न कह दे
वह धुरी है परिवार की।
सच बताना
कितनी पत्नियों ने जाना
उन निजत्व के पलों में भी
पुरूष के दर्द को पहचाना?
उत्तर मिले तो
कभी
अवश्य बताना।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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