पृथ्वी, मनुष्य और विभाजन
जय प्रकाश कुवंर
जीवन विहीन पृथ्वी को असुर हिरण्याक्ष ले जाकर समुद्र तल में छुपा दिया था। भगवान विष्णु वराह का अवतार लेकर पृथ्वी को वहाँ से निकाल लाये और उसे अपने कक्ष पर पुनः स्थापित किये। उन्होंने ब्रह्मा जी को पृथ्वी पर पुनः जीवन स्थापित करने के लिए कहा। इस क्रम में सबसे पहले एक पुरूष मनु और एक स्त्री सतरूपा को जन्म देकर पृथ्वी पर मनुष्य की आबादी आगे बढ़ाने का काम उन्हें सौंपा गया। इस प्रकार यहाँ से पृथ्वी पर एक बार फिर से मनुष्य का क्रमशः विकास होना शुरू हुआ। और पृथ्वी का भार मनुष्य के कंधों पर सौंपा गया।
लेकिन जैसे जैसे मनुष्य का विकास होते गया और आबादी बढ़ती गई, उसने सबसे पहले एक पृथ्वी को दो गोलार्धों, उतरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में विभक्त किया। और विकास हुआ तब उसने एक पृथ्वी को सात महाद्वीपों में विभाजित कर दिया। एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और अंटार्कटिका ये सात महाद्वीप बने। अब बारी आई महाद्वीपों में विभाजन की, तो एक एक महाद्वीप में कई कई देश बन गये। एशिया महाद्वीप में विभाजन के साथ भारतवर्ष का उदय हुआ। पहले भारतवर्ष के साथ भी कई देश थे। लेकिन इसमें भी समय और विकास के साथ विभाजन हुआ और केवल एक भारतवर्ष रह गया। अब सन् १९४७ में भारत का एक और विभाजन हुआ तो दो देश हिन्दुस्तान और पाकिस्तान बन गया।
महाद्वीप और देश बनने के बाद पृथ्वी पर अनेक धर्मों का उदय हुआ। अब मनुष्य का विभाजन धर्म के आधार पर होने लगा। इस क्रम में इसाई, मुस्लिम हिन्दू, पारसी,आदॊ अनेक धर्म उभर कर आये। अपने अपने धर्म को बढ़ावा देने की हरेक देशों की जनसंख्या में होड़ सी लग गयी। अब मनुष्य की पहचान उसके धर्म के आधार पर होने लगी। वह अब मनुष्य न रह गया बल्कि इसाई मुसलमान और हिन्दू बन गया। अनेक देशों की पहचान मुस्लिम देश, इसाई देश जैसा हो गया। आज धरती के इतने विभाजनों के बाद पृथ्वी पर भारत एक स्वतंत्र देश है। विभाजन के बाद जहाँ पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र बना वहीं भारत हिन्दू बहुल्य होने के बावजूद एक धर्मनिरपेक्ष देश बना। हालांकि भारत भी २८ राज्यों और ८ केन्द्र शासित राज्यों में बंटा हुआ है। हर राज्य अनेकों जिलों में बंटा हुआ है। हरेक जिला अनेकों सब डिवीजनों और ग्राम पंचायतों में बंटा हुआ है। और हर ग्राम पंचायत भी कई गाँवों में बंटे हुए हैं। हरेक गाँव अनेकों परिवारों में बंटे हुए हैं। फिर भी भारत एक ही है और इसकी पहचान भारतवर्ष है।
धरती के पुनः स्थापित होने के बाद एक धरती का बंटवारा होते होते आज धरती का छोटा छोटा टुकड़ा एक एक परिवार के स्वामित्व में है। लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यह बंटवारा अभी रूका नहीं है। आज लगभग हर परिवार टूट कर टुकड़े टुकड़े हो रहा है। अब सम्मिलित परिवार के जगह एकल परिवार बन गया है, जिसमें केवल स्त्री पुरुष और उनके बच्चे हैं। इस प्रकार धरती का विभाजन चलते जा रहा है।
लेकिन अब इससे भी दुखद घटनाएं देखने और सुनने को आ रही हैं, जिसमें स्त्री पुरुष का भी बंटवारा हो रहा है, चाहे वह कोर्ट कचहरी के माध्यम से हो अथवा आपसी सहमति से हो। यह है धरती अथवा पृथ्वी के उत्पति से अब तक का बंटवारा का सफर, जो हम सब सुने हैं, तथा देख रहे हैं। भगवान ने समुद्र तल से पृथ्वी को लाकर स्थापित किया था लेकिन हम मनुष्यों ने विकास के नाम पर इसे एक नहीं रहने दिया बल्कि धर्म, देशी, विदेशी, जाति आदि के नाम पर खंडित कर दिया। मनुष्य की पहचान अब और भी गुम हो रही है। वह अब केवल हिन्दू, मुसलमान या फिर इसाई , पारसी, जैन, बौद्ध आदि के रूप में रह गया है। इसके बाद उसकी पहचान जाति के रूप में रह गई है। आज सरकारी आंकड़ों में भारत में मनुष्य की पहचान सामान्य जाति, अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में रह गई है। अभी यह क्रम कहाँ तक जाएगा कहना संभव नहीं है।
इस लेख को लिखते समय मुझे इस पृथ्वी पर भारत में जन्मे एक महान कवि श्री प्रदीप जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं, जो इस प्रकार पीड़ित शब्दों में उन्होंने मनुष्य के बारे में लिखा है।
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,
कितना बदल गया इंसान।
सूरज न बदला, चांद न बदला, ना बदला आसमान।
कितना बदल गया इंसान।।
अंत में मेरी भी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हे प्रभु जिस पृथ्वी को आपने समुद्र तल से वाराह रूप धारण कर उबार लाया था और मनु सतरूपा के माध्यम से इस पृथ्वी पर मनुष्य को विकसित किया था, उस मनुष्य जाति को फिर से सदबुद्धि प्रदान करने की कृपा कीजिये ताकि वह अपना घमंड त्याग कर जाति धर्म के मसले से उपर उठकर एक बार फिर मानवता को स्थापित कर इस पृथ्वी को शांति पूर्वक रहने के लिए स्वर्ग बनाये। जय प्रकाश कुवंर
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