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मानस के किष्किंधा कांड में भगवान राम एवं लक्ष्मण की वंदना

मानस के किष्किंधा कांड में भगवान राम एवं लक्ष्मण की वंदना

धनंजय जयपुरी
मानस के किष्किंधा कांड में भगवान राम एवं लक्ष्मण की वंदना इस प्रकार की गई है-
कुंदेन्दीवरसुंदरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ,
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ, सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि तत्।।
अर्थात् कुंदपुष्प और नीलकमल के समान सुंदर गौर एवं श्यामवर्ण, अत्यंत बलवान, विज्ञान के धाम, शोभासंपन्न, श्रेष्ठ धनुर्धर, वेदों के द्वारा वन्दित, गौ एवं ब्राह्मणों के समूह के प्रिय, माया से मनुष्य रूप धारण किए हुए, श्रेष्ठ धर्म के लिए कवचस्वरूप, सबके हितकारी, श्रीसीता जी की खोज में लगे हुए, पथिकरूप रघुकुल के श्रेष्ठ श्रीरामजी और श्री लक्ष्मणजी दोनों भाई निश्चय ही हमें भक्ति प्रद हों।
मैंने 'अनंगशेखर' छंद में अनुवाद इस प्रकार किया है-
सुकुन्द पुष्प नीलपद्म के समान शोभते,
सफेद-श्याम वर्ण के बली विवेक धाम हैं।
महाधनु धरें करें समस्त वेद वन्दना,
द्विजाति धेनु के लिए समुद्र सेतु राम हैं।।
मनुष्य रूप धार के सुवर्म धर्म के बने,
सिया कु ढूंढते फिरें त्रिलोक के विराम हैं।
कृपा करें विपन्न पे हरें विकार लोग के,
सुभक्त भ्रात शेष संग आप चार धाम हैं।।
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