देह काम करत नइखे,
भुख प्यास मरत नइखे।पेट भरल भारी बा,
उपवास के तैयारी बा।
बैठल बैठल केहू चार दिन खिआई,
ओकरा बाद त मुंह फुल जाई।
गैर कैसे देखी जब,
आपन लोग देखत नइखे।
गैर आउर आपन में,
तनिको सा अब फरक नइखे।
कान्हा चढ़ के घुमल जे,
उ सब नजर से उतार दिहलस।
बड़ा आशा आपन देह रहे,
उहो साथ छोड़ दिहलस।
इहे आज कल संसार में,
व्यवहार बाटे भाई,
केकरा पर केहू घमंड करी,
केकरा पर मन इतराई।
जय प्रकाश कुवंर
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