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रिश्तों के धागे

रिश्तों के धागे

जनार्दन द्विवेदी
अपनें रिश्तों के यह धागे ,,,,,,,,,,,,
अपनें रिश्तों के यह धागे उमर भर रहे हमको बाँधे l
हम टूटे हारे कई कई बार धागे जिंदगी को रहे साधे l
अपने रिश्तों के यह धागे ,,,,,,,,,,,
इन रिश्तों मे बँधकर के जिंदगी में आया है सुधार l
जन्मों से धागों मे बँधा है अपना पूरा घर परिवार l
अपना जोर लगाके देखो नहीं टूटेगें रिश्तों के धागे l
अपनें रिश्तोंं के यह धागे ,,,,,,,,,,,,
जब धागों के रंग निखरे तब हममे आई खुशहाली l
मीठे सपनो के असर से दूर गई है अपनी बदहाली l
उमर जा ढली ढलान मे धागे कभी हुए नहीं आधे l
अपनें रिश्तों के यह धागे ,,,,,,,,,,,,
दुनिया रही होगी हम नही रहे है किसी मजबूरी में l
हम किसी और जगह गए नहीं रिश्तों की दूरी में l
हमको कभी इसकी फिकर नही कौन रहा है आगे l
अपनें रिश्तों के यह धागे ,,,,,,,,,,,,
जबसे हम बँधते आए है अपने रिश्तों के बंधन में l
तबसे पूरी तरह से सामिल रहे जीवन के नंदन में l
पराए में अपनापन दिखा जाते रिश्तों के यह धागे l
अपनें रिश्तों के यह धागे ,,,,,,,,,,,,,,

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