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मालवीय जी के व्यक्तित्व में भारत की आत्मा विराजती थी,अटल जी नेता न होते तो हिन्दी के महान कवि होते:-डा अनिल सुलभ

मालवीय जी के व्यक्तित्व में भारत की आत्मा विराजती थी,अटल जी नेता न होते तो हिन्दी के महान कवि होते:-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में भारत के इन दोनों रत्नों के साथ डा उषा रानी 'दीन' की मनाई गई जयंती,दी गई काव्यांजलि।
पटना, २५ दिसम्बर । भारतीय आत्मा की जीवंत मूर्ति थे मालवीय जी। उनके व्यक्तित्व में भारत की सौंदर्यवती आत्मा विराजती थी। हिन्दी और भारतीय संस्कृति की व्यापक शिक्षा के लिए दिया गया उनका अवदान कभी भुलाया नही जा सकता। वे संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी के विश्रुत विद्वान ही नहीं अद्भुत वक़्ता भी थे। विद्वता, विनम्रता, सेवा, संघर्ष और वलिदान उनके रक्त के एक-एक बूँद में था। वे सच्चे अर्थों में महामना और आदर्श ऋषि थे, जिनके चरणों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी सिर झुकाते थे। वे स्वतंत्रता-संग्राम के महान सेनापति और हिन्दी-आंदोलन के पितामह थे।
यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने जयंती पर अटल जी को समरन करते हुए कहा कि, बाजपेयी जी राष्ट्रीयता को समर्पित, आधुनिक भारत के एक ऐसे महापुरुष थे जिन पर संपूर्ण भारत वर्ष गर्व कर सकता है। वे राजनेता न होते तो 'महाकवि' होते। उनके विराट व्यक्तित्व को साहित्य ने संवारा था।
डा सुलभ ने हिन्दी की प्राध्यापिका रहीं विदुषी कवयित्री डा उषा रानी 'दीन' को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया और कहा कि उषाजी साहित्य में स्त्री-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती थीं। उन्होंने अपने स्वर्गीत पति डा सीता राम 'दीन' के बिखरे साहित्य को जिस प्रकार संकलित और प्रकाशित कर हिन्दी को समृद्ध किया और पति की स्मृति को सहेजा वह एक अनुकरणीय दृष्टांत है। वे स्वयं एक विदुषी कवयित्री और सम्मेलन की साहित्यमंत्री भी थीं।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, डा मुकेश कुमार ओझा, वरिष्ठ शिक्षिका निर्मला सिंह, शंकर सिंह पहाड़पुरी, कमल नयन श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने इन पंक्तियों से किया कि “हमारे सामने जैन माहताब होता है/ किसी के हाथ का पत्थर गुलाब होता है/ जहाँ किताब की बिक्री कहीं नहीं होती/ हरेक शख़्स का चेहरा किताब होता है"। कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि “'यूँ तो ये दिल है खिलौना और भी हाथों का / पर आप की ये मेहरबानी उम्र भर चलती रहे”। वरिष्ठ कवि सुनील कुमार उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, डा रमाकान्त पाण्डेय, ईं अशोक कुमार, डा शालिनी पाण्डेय, नीता सहाय, शंकर शरण आर्य, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, अरविन्द कुमार सिन्हा आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। समारोह में, वरिष्ठ संस्कृति-कर्मी मनोज बच्चन, नन्दन कुमार मीत, राम प्रसाद ठाकुर, राजेश राज, गणेश कुमार, दुःख दमन सिंह, रूबी झा, श्रीकांत सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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