आस्था के नाम|
डॉ रामकृष्ण मिश्र
आस्था के नाम ऐसे कलह उकसाया न कर।
ऊर्ज्या का कोष ऐसे बे वजह जाया न कर।।
दोष किसमे नहीं होता आदमी लोहा भी है।
झुकेगा भी मुड़ेगा भी द्वेष भर लाया न कर।।
इमारत हैं धर्मशालाएँ सभी कुछ हैं यहाँ।
देश की कमियाँ हमेशा इस तरह गाया न कर।।
दुखी होने के बहाने अनगिनत हो सकेंगे।
खुश न रहने की कसम भी चाहकर खाया न कर।।
प्रेम का सौदा नहीं उदभ्रान्त होना चाहिए।
एक आतंकी सदृश चौपाल में आया न कर।।
इस धरा पर मनुज को ही श्रेष्ठ माना गया है।
तब सुनहले पदक से खुद को सुदूर किया न कर।।
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