हिन्दी का परचम लहरायें
बजा शब्दवीणा हम करें, नये गीतों का नव्य सृजन।हिन्दी का परचम लहरायें, हिन्द देश को करें नमन।।
पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से लेकर के दक्षिण तक।
हिन्दी की जय हो, हिन्दी की मिले चतुर्दिक दिव्य झलक।।
हिन्दी की सेवा में रहें समर्पित साँसेंं, यह जीवन।
बजा शब्दवीणा हम करें, नये गीतों का नव्य सृजन।।
हिन्दी का साहित्य सतत पुष्पित हो तथा पल्लवित हो।
कला तथा संगीत साधना में भी निहित राष्ट्रहित हो।।
प्रतिभाओं को मंच मिले, हो ज्ञान-रत्न का संरक्षण।
बजा शब्दवीणा हम करें, नये गीतों का नव्य सृजन।।
वसुधा को कुटुम्ब मानें, मानव-मूल्यों का करें वरण।
सद्भावों का नवदीपक ले, प्रगति-पंथ पर धरें चरण।।
झंकृत रहे चेतना, सुविचारों से हुलसित अंतर्मन।
बजा शब्दवीणा हम करें, नये गीतों का नव्य सृजन।।
जय हिन्दी! जय हिन्द! जय शब्दवीणा!
प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी,
संस्थापक-सह-राष्ट्रीय अध्यक्ष,
शब्दवीणा, राष्ट्रीय साहित्यिक-सह-सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा'
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