दुर्दशा
भारत माता की रक्षा के खातिरअमर सपूतों ने आहुति दी।
देशवासियों की सुरक्षा की खातिर,
अपने प्राणों की आहुति दी ।
शाहीदों की माँ, भार्या व बहना ने ,
बड़ा महान ही त्याग किया।
भारत माता की सम्मान की खातिर,
सर्वस्व सुखों का परित्याग किया ।
माता ने बेटे को खोया,
बहनों ने भाई को खोया।
बच्चों ने पिता को खोया,
भार्या ने पति को खोया ।
परिवार की जिम्मेवारियों का बोझ,
जब विधवा के कंधों पर आया।
अचानक आई इन विपत्तियों से,
उसका दुर्बल मन बहुत घबराया ।
नियति का खेल मान कर ,
समभौता उसने तकदीर से किया।
विकट परिस्थितियों से लड़ने का,
कठिन व्रत का संकल्प लिया ।
सरकार की आर्थिक मदद से,
जीवन का नया अध्याय शुरू किया।
परिवार की डूबती नैया को,
किनारे लाने का कठिन संकल्प लिया ।
अपनी अस्मिता को बचाए ,
नव जीवन का शुरुआत किया ।
मगर समाज के दरिंदों को,
उसका यह काम रास न आया।
लूट उसकी पवित्र अस्मिता को,
भरे बाजार उसे शर्मसार किया।
जिल्लत भरी जिन्दगी जीने को,
दरिंदों ने उसे मजबूर किया ।
जिसने देश हित की खातिर,
अपना सर्वस्व न्योछावर किया।
उसकी पतिव्रता नारी की अस्मिता,
सरेआम तार-तार किया ।
जो थी हमारे सम्मान के पात्र,
उसका हमने अपमान किया।
मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा के बदले,
उसका हमने तिरस्कार किया ।
एकाकी जीवन है विधवा का,
असुरक्षित जीवन है विधवा का।
कष्टकर जीवन है विधवा का,
नारकीय जीवन है विधवा का ।
सुरक्षा और सहयोग हमें देनी होगी ,
मान-सम्मान की रक्षा करनी होगी।
मदद और उद्धार हमें करनी होगी ,
यह दायित्व समाज को लेनी होगी।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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