अरब के लोगों ने हिन्दुओं से क्या क्या सीखा ?
बृज नन्दन शर्मा
अक्सर मुस्लिम विद्वान् मदरसों में बच्चों को यही सिखाते हैं की सभी हिन्दू जाहिल होते हैं और जब भारत में इस्लाम आया तो मसलमानों की संगत के कारन हिन्दू भी समझदार हो गए हैं लेकिन यह मुस्लिम विद्वान् यह नहीं जानते की की कुछ ऐसी बातें हैं जो अरब लोगों ने भारतीय हिन्दुओं से सीखी हैं और जिनको विश्व के अन्य लोगों ने अपना लिया है
1-स्थानीय मानप्रणाली और शून्य
आर्यभट (476-550) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है,इसमे इसमे स्थानीय मानप्रणाली और शून्य (Place value system and zero)का वर्णन है , इसे अरबी में "निजामुल कीमत अल मकानियः वल सिफर - نظام القيمة المكانية وصفر " कहते हैं ,सन 786 में खलीफा "अबू जफ़र अब्दुल्लाह मामुन - ابوجعفر عبدالله مامون "के समय ईरानी गणतिज्ञ ख्वारज़मी ने संस्कृत ग्रंथों का अरबी अनुवाद किया , और अरब के लोगों को शून्य और गिनती का सही तरीका सिखाया , यह भी वैदिक संस्कृति की देन है , आज भी मुसलमान कुरान की सूरा और आयतों का नंबर इसी प्रणाली से देते हैं .आज इसी विधि का प्रयोग करके मुसलमान कुरान की आयतों और हदीसों के नंबर देते रहते है मूल कुरान में आयतों के नंबर नाजिल नहीं हुए थे
2-यूनानी चिकत्सा विधि
भारत ,पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों में इलाज करने के लिए यूनानी विधि प्रचलित है ,जिसे "तिब्बे यूनानी - طب یونانی " कहा जाता है , इस विधि की खोज सन 980 में अबी सीना नामके अरब चिकित्सक ने की थी . इसका पूरा नाम "अबू अली हुसैन इब्न अब्दुल्लाह इब्न सीना - أبو علي الحسين ابن عبد الله ابن سينا" है , इसने महर्षि सुश्रुत और चरक की लिखी पुस्तकों का आधार लेकर यूनानी चकित्सा की बुनियाद रखी , आयर्वेद को वेद का अंग माना जाता है ,
3- उर्दू में देवनागरी अक्षर
संस्कृत और हिन्दी की लिपि देवनागरी है . इसमे हरेक ध्वनि के लिए पृथक अक्षर है , इस्लाम की धार्मिक भाषा अरबी है जिसमे ऐसा नहीं है जब मुसलमान भारत आये तो उन्होंने यहाँ उर्दू को अपनी भाषा बना लिया और यहां प्रचलित शब्दों को लिखनेके लिए अरबी भाषा में कुछ अतिरिक्त अक्षर जोड़ दिए जैसे ,ट , ड ,ड़ ( ٹ ,ڈ ,ڑ )मुसलमानों ने यह ध्वनि या अक्षर भारत से लिए है , इनका अल्लाह भी यह अक्षर नहीं बोल सकता
4-खगोल विज्ञानं
खगोल विज्ञानं ( Astronomy" ) को अरबी में "इल्मुल फलक - علم الفلك "और " ईल्मुल नजम -علم النجوم " कहा जाता है , यह भी वैदिक संस्कृति की पैदाइश है ,सैकड़ों साल पहले भारत के खगोल शास्त्री ने " सिद्धांत " नामक ग्रन्थ की रचना की थी , जिसका सन 770 में खलीफा मंसूर के एक दरबारी ने संस्कृत से अरबी में अनुवाद किया , और इसका नाम " जीज महलुल फिल सिंद हिन्द दरजह दरजह - زيج محلول في السندهند لدرجة درجة "इस ग्रन्थ में दी गयी विभिन्न टेबुलों की मदद से ग्रहों की सही स्थिति , उनका अंश और कोण का सही पता चल जाता है , मुसलमान इस्लामी जंतरी ( पंचाग " बनाने में इसका सहारा लेते हैं अरबी में पंचांग को जंतरी और कुंडली (horoscope ) को "अल अबराज ( الابراج ) कहते हैं ,और राशि के अनुसार दैनिक फलादेश को (حظك اليوم) ‘Your Fortune Todayकहा जाता है अरबी 12 राशियों के नाम भी हिन्दू ग्रंथों वर्णित नामों से लिए गए हैं जो इस प्रकार हैं
1-Aries (الحمل)हमल -मेष
2-Taurus(لثور)सौर -वॄष
3-Gemini (الجوزاء)ज़ौजह -मिथुन
4-Cancer(السرطان)सरतांन - कर्क
5-Leo ( الأسد)असद-सिंह
6-Virgo (لعذراء)-अजरा -कन्या
7-Libra (الميزان)-मीजान -तुला
8-Scorpio (العقرب)-अकरब -वृश्चिक
9-Sagittarius (القوس)-कौस-
10-Capricorn ( الجدي)-जद्दी - मकर
11-Aquarius (الدلو)-लिदो -कुम्भ
12-Pisces( الحوت)-हूत - मीन
इतना ही नहीं जिस तरह हिन्दू ज्योतिषी राशि के अनुसार हर व्यक्ति के लिए दैनिक भविष्य बता देते हैं जो समाचारों के भी छपते है बिलकुल वैसे ही अरब ज्योतषी भी करते है उदहारण के लिए एक अरबी अखबार में एक व्यक्ति का राशिफल दिया जा रहा है
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5-वैदिक गणना पद्धति
इस विधि को(Hindu–Arabic numeral system)भी कहा जाता है क्योंकि यह विधि अरब लोगों ने भारत से सीखी थी , फिर अरब से यूरोप के लोगों ने सीखी थी
इस्लाम से पहले और इस्लाम के जन्म तक अरब लोगों को गिनती नहीं आती थी , वह अरबी के एक एक अक्षर के लिए एक संख्या मानते थे , जैसे अलिफ को 1 और बे को दो , लेकिन इस्लाम के हजारों साल पहले भारतीय विद्वानों के इकाई से लेकर महा शंख तक की गणना कर ली थी . गिनती की इस विधि को सन 825 में अरब गणितज्ञ "अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन मूसा अल ख्वारज़मी - عبد الله محمد بن موسى الخوارزمی "ने अरब में प्रचलित किया , बाद में सन 830 में " अबू यूसुफ याकूब बिन इसहाक अल सबाह अल किन्दी - أبو يوسف يعقوب بن إسحاق الصبّاح الكندي "ने भारत की इस गणना विधि को इस्लामी देशों में फैला दिया , जिसे सभी ने अपना लिया . यह भी वैदिक संस्कृति की देन है , इस विधि को " निज़ाम अल अदद अल हिंदी अल अरबी - نظام العد الهندي العربي " कहा जाता है
6-Iजन्नत में भारतीय मसाले
वैदिक संस्कृति काफी प्राचीन और व्यापक है ,इसमे धर्म , भाषा , शिष्टाचार , परम्परा के अतिरिक्त भोजन भी सम्मिलित है , भारत के लोग भोजन के अनेकों प्रकार के मसालों और औषधीय पदार्थों का प्रयोग करते हैं , लेकिन बहुत काम लोग जानते होंगे कुछ ऐसे भारतीय मसाले हैं , जिनका प्रयोग मुसलमानों का अल्लाह जन्नत में शराब बनाने में इस्तेमाल करेगा , और जन्नत में वही शराब पिलायी जायेगी .ऐसी तीन चीजों का उल्लेख कुरान में है
1-जिन्जिबील -अदरक
संस्कृत में अदरक को 'श्रंगवेर ' भी कहा गया है . और यही शब्द ग्रीक भाषा में ' जिन्जीबरिस zingيberis (ζιγγίβερις).हो गया .फिर अंगरेजी में "जिंजर Ginger " होगया .और इसी को अरबी में " जिन्जिबील زنجبيل " कहा गया है ,वनस्पति शाश्त्र में इसका नाम " Zingiber officinale, " है .मूलतः यह शब्द तमिल भाषा के शब्द " इंजी இஞ்சி " और " वेर வேர் " से मिल कर बना है .जिसका अर्थ सींग वाली जड़ होता है .और अदरक को सुखाकर ही "सौंठ " बनायीं जाती है .जिसका प्रयोग अल्लाह जन्नत में शराब में मिलाने के लिए करता है . इसलिए कुरान में कहा है ,"और वहां उनको ऐसे मद्य का पान कराया जायेगा जो जंजबील मिला कर तय्यार किया गया हो " सूरा -अद दहर 76:17
"وَيُسْقَوْنَ فِيهَا كَأْسًا كَانَ مِزَاجُهَا زَنْجَبِيلًا"76:17
And in that [paradise] they will be given to drink of a cup flavoured with ginger, (76:17)
नोट -कुरान के हिंदी अनुवाद में इस आयत का खुलासा करते हुए बताया है ,जन्नत में शीतलता होगी . और जन्जिबील का तासीर और गुण गर्म होता है और वह स्वादिष्ट भी होता है ,और उसके मिलाने से मद्य आनंद दायक हो जाता है '
(हिंदी कुरान .मकताबा अल हसनात ,पेज 1110 टिप्पणी 11)
2-काफूर - कपूर
संस्कृत में इसे " कर्पूर "कहा जाता है . और भारत की सभी भाषाओँ के साथ फारसी , उर्दू में यही नाम है . अंगरेजी में "Camphor ' है .और वनस्पति शाश्त्र में इसका नाम " सिनामोमस कैफ़ोरा (Cinnamomum camphora, हैयह एक वृक्ष से प्राप्त किया जाता है .भारत में यह देहरादून, सहारनपुर, नीलगिरि तथा मैसूर आदि में पैदा किया जाता है.लगभग 50 वर्ष पुराने वृक्षों के काष्ठ आसवन (distillation) से कपूर प्राप्त किया जाता है.भारत में कपूर का उपयोग दवाइयों , सुगंधी और धार्मिक कामों के लिए किया जाता है . लेकिन अल्लाह जन्नत में कपूर का प्रयोग शराब में मिलाने के लिए करता है , कुरान में कहा है ,"और वह ऐसे मद्य का पान करेंगे जो कपूर मिला कर तय्यार किया होगा "सूरा -अद दहर 76:5
"إِنَّ الْأَبْرَارَ يَشْرَبُونَ مِنْ كَأْسٍ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُورًا "76:5
(they shall drink of cup whereof mixture of Kafur )
नोट -इस आयत की व्याख्या में कहा है ,वह कपूर अत्यंत आनंदप्रद , स्वादिष्ट ,शीतल , और सुगन्धित होगा और जोजन्नत का आनंद लेने वाले होंगे उन्हीं को मिलेगा
(कुरान हिंदी पेज 1109 टिप्पणी 3)
3-मुस्क - कस्तूरी
यद्यपि कुरान में कस्तूरी शब्द नहीं आया है ,कस्तूरी मृगों से जो सुगन्धित पदार्थ मिलता है ,यूनान तक निर्यात होता था .और ग्रीक भाषा कस्तूरी को " Musk " कहा जाता है ,कस्तूरी मृग को "Musk Deer " कहते हैं , और अरबी में " المسك الغزلان " कहते है . वैज्ञानिक भाषा में इसका नाम " Moschus Moschidae "है . ग्रीक भाषामे कस्तूरी मृग के लिए प्रयुक्त इसी मुस्क शब्द को कुरान में लिया गया है ,
कस्तूरी मृग लुप्तप्राय प्राणी है ,जो हिमालय क्षेत्र में मिलता है .उसकी ग्रंथियों से जो स्राव निकालता है उसी को कस्तूरी कहते हैं .जो दवाई , और सुगंधी में काम आती है . लेकिन अल्लाह इसे भी शराब उद्योग में इस्तेमाल कर लिया , कुरान में लिखा है ,
"उन्हें खालिस शराब पिलायी जायेगी ,जो मुहरबंद होगी .और मुहर उसकी मुश्क की होगी " सूरा -अल ततफ़ीफ़ 83:25-26
"يُسْقَوْنَ مِنْ رَحِيقٍ مَخْتُومٍ "83:25
"خِتَامُهُ مِسْكٌ وَفِي ذَٰلِكَ فَلْيَتَنَافَسِ الْمُتَنَافِسُونَ " 83:26
They will be given a drink of pure wine whereon the seal , (25)pouring forth with a fragrance of musk. (26)
नोट - इन आयतों में हिंदी कुरान में कहा है कि मनुष्य को उसी शराब की इच्छा करना चाहिए जो अल्लाह ने बनायी गयी है (.पेज 1139 टिप्पणी 11)
निष्कर्ष -कुरान से प्रमाणित इस सभी पुख्ता सबूतों से सिद्ध होता है कि अगर मुसलमान जन्नत भी चले गए तो वहां भी अल्लाह को भारत के इन तीनों मसालों की जरुरत पड़ेगी .जो उसे भारत से ही मंगवाना पड़ेंगी . क्योंकि यह वस्तुएं अरब में पैदा नहीं होती .और यदि अल्लाह ऐसा नहीं करेगा तो कुरान दिया गया उसका वादा झूठ साबित हो जायेगा .
इसलिए हमारा उन सभी भारत विरोधी जिहादियों से इतना ही कहना ही कि जब जन्नत में भी अल्लाह को भारतीय मसालों की जरुरत पड़ेगी तो स्वर्ग जैसे इस भारत को बर्बाद क्यों करना चाहते हो ?क्योंकि हमारे लिए तो हमारी जन्मभूमि ही जन्नत से भी महान है !
नोट-लेख संख्या -200 /87 दिनांक 29 /1 /2013 फे बुक 31 /03 /2013
अब जो मौलवी लोग हिन्दुओं को जाहिल और काफिर कहते है वह हिन्दुओं की बनायीं इन विद्याओं को छोड़ कर दिखाएँ और हिम्मत हो तो उन भारतीय मसालों को हराम घोषित कर के दिखाएँ जिनका अल्लाह शराब बनाने में प्रयोग करेगा
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