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ठिकाने

ठिकाने

जनार्दन द्विवेदी
जब तुम्हारे ठिकानें पे ,,,,,,,,,,,,,
हमको दुनिया के सब ठिकाने भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे पहुँच पाया l
अब आने के बाद मन पछताता है,
पहले से मैं क्यूँ नहीं यहाँ पे आया l
हमको दुनिया के सब ठिकाने भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे ,,,,,,,,,,,,

दुनिया मे आए गए कितने मौसम,
एक तुम्हारा मौसम मस्ताना था l
उस मौसम में पल गई यह जिंदगी,
अनजाने मन तुम्हारा दिवाना था l
जब तुम्हारे रंग मे रंग गई जिंदगी,
तब जीने का अर्थ मै समझ पाया l
हमको दुनिया के सब ठिकाने भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे ,,,,,,,,,,,,,

राह जानी पहचानी नहीं मिली हमें,
अपने अनुमान के सहारे पे मैं चला l
औरों की हालत का नहीं हमें पता,
किंतु हमारा अपना हुआ था भला l
अपने खुद के बहाने याद नहीं रहे,
जब मन तुम्हारा बहाना कर पाया l
हमको दुनिया के सब ठिकाने भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे ,,,,,,,,,,,,,,,

उपर मे ही थमा दुख का आसमाँ,
जिंदगी मे आई साँझ मस्तानी थी l
छँट गया रात का वह धुँधलका,
धरती पे फैली वह भोर सुहानी थी l
सपने हम देख आए थे बहुत सारे,
तुम्हारा वाला ही मै पूरा कर आया l
हमको दुनिया के सब ठिकानें भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे ,,,,,,,,,,,,,

कुछ आँधी तूफान आए और गए,
मेरे लिए कर नहीं पाए थे वे बाधा l
ऐसे मे जिंदगी का सफर रहा पूरा,
कहीं से हो पाया नही वह आधा l
जिन कर्मो के लिए बना मै साधन,
उन्हे पूरा करने का मैं मन बनाया l
हमको दुनिया के सारे ठिकानें भूले,
जब तुम्हारे ठिकाने पे ,,,,,,,,,,,

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