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जूते पड़ें

जूते पड़ें

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जूते पड़ें,लग़्बगोई नहीं जाती ।
जान जाए,बदगोई नहीं जाती।
                खुले रोशनी का दरवाजा कैसे,
                कुंडी गसफ की तोड़ी नहीं जाती।

अंधे नैनसुखों की इस बस्ती में,
फरोख्त सुर्मों की करी नहीं जाती।
                पुरखार करीलों के वीराने में
                ग़ज़ल सितारों की सुनी नहीं जाती।

ला रहा है अजाब फिर फासीवाद,
कानों में यह मुखबिरी नहीं जाती।
(लग़्बगोई=झूठ बोलना)
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