Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

मुस्कुराने का हुनर

मुस्कुराने का हुनर

ऋषि रंजन पाठक

तुम पढ़ नहीं पाओगे,
उदासियों के वो अनकहे पन्ने,
जो मेरी आँखों के पीछे छुपे हैं,
मुस्कुराहट की परतों में।


मैंने सीखा है दर्द को सजाना,
जैसे कोई तस्वीर खूबसूरती से भर दे,
दाग़ों के निशान छुपाकर।
जैसे कोई सूरज ढलते-ढलते,
रंग भर दे गगन में।


मैंने सीखा है,
आंसुओं को आँखों तक आने से पहले रोक लेना,
और दर्द को लफ्ज़ बनने से पहले,
हवा में खो देना।


तुम देखोगे बस मुस्कान,
लेकिन सुन न पाओगे,
उसके पीछे गूंजती सिसकियां।
तुम समझोगे शायद हंसी,
लेकिन महसूस न करोगे,
उसके पीछे का खालीपन।


ये हुनर है या आदत,
मुझे खुद भी नहीं पता।
पर हर दर्द को चुपचाप पहन लेना,
मेरा फ़ितरत बन चुका है।


तुम नहीं समझ पाओगे,
इन होंठों की सजी मुस्कान के पीछे,
दर्द के वो तूफान,
जो हर रात आते हैं चुपचाप।


कभी कोशिश करना,
मेरे लफ़्ज़ों की गहराई में उतरने की,
जहाँ हर हंसी के नीचे,
एक सिसकियों का समंदर छुपा है।


तो जब देखो मुझे मुस्कुराते हुए,
सोचना ज़रूर,
क्या ये मुस्कान सच में है?
या एक और परदा,जो छुपा लेता है मेरे दिल की कहानियां।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ