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कलम का कमाल देख लो

कलम का कमाल देख लो ,

क्या नहीं कलम बोलती है ।
बिना मुॅंह की होती कलम ,
फिर भी जुबान खोलती है ।।
कलम कभी चुप न बैठती ,
सच को उजागर ये करती है ।
कलम सदा सत्य है बोलती ,
कलम कहाॅं कभी डरती है ।।
कलम सदा रहती है पीड़ित ,
जन के कटु मिथ्या भावों से ।
कलम कभी नहीं हर्षित हुई ,
दुराचार दुर्भाव प्रभावों से ।।
कभी दिखती व्यथित कलम ,
कभी करुणा ये बरसाती है ।
बहन बेटियों की पीड़ा देखते ,
आग बबूला ही हो जाती है ।।
बोलती कलम में वह शक्ति ,
राजसिंहासन हिल जाता है ।
कुनीति विरोधी सदा कलम ,
आचार विचार से ये नाता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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