व्यक्तियों से राष्ट्र तक हैं समस्याएँ एक सी।
डॉ रामकृष्ण मिश्रव्यक्तियों से राष्ट्र तक हैं समस्याएँ एक सी।
समाधेता की समझ हो सर्वहित में नेक सी।।
उलझनों की बाढ़ सी आती कभी चिंता लिए।
धीरता से सुलझ जाती है प्रबुद्ध विवेक सी।।
दुष्टता की नहीं सीमा दिखाई देती कहीं।
साहसिक संकल्पना जाग्रत रहे विनिवेश सी।।
रहे हैं गढ़ते पड़ोसी ध्वंस की उत्तेजना।
किन्तु थोड़े में पराभव विकल होती स्नेह सी।।
अन्तहीन व्यथा-कथा में डूब जाता आत्मबल।
एक मन बेचैन पाखी बुद्धि भी अनिकेत सी।।
तंग गलियाँ, राजपथ दी्वार सी लगने लगे।
कर्ण भेदी असह ध्वनियाँ गूँजती समवेत सी ।। हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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