शनिदेव कर्मों के अनुसार जातकों को फल देते हैं - इस वर्ष शनि 01 जनवरी से 29 मार्च तक कुम्भ राशि में और 29 मार्च से वर्षान्त तक मीन राशि में भ्रमण करेंगे
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |सनातन धर्म में सभी ग्रहों में शनिदेव को न्यायमूर्ति यानि न्याय के देवता माना जाता है। शनिदेव की पूजा प्रेम के कारण नहीं बल्कि डर के कारण की जाती है। क्योंकि शनिदेव कर्मों के अनुसार जातकों को फल देते हैं। जातक के अच्छे कर्म पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है और बुरे कर्मों में लिप्त रहने वालों पर शनिदेव का प्रकोप बरसता है। शास्त्र के अनुसार, शनिदेव को भगवान सूर्य और माता छाया के पुत्र बताया गया हैं। शनिदेव का वर्ण कृष्ण है और इनकी सवारी कौआ हैं। किदवंती है कि शनिदेव श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त में से एक थे और बाल्यावस्था में ही भगवान श्रीकृष्ण की आराधना में लीन रहते थे।
शनिदेव का विवाह चित्ररथ की कन्या से हुआ था। एक बार जब उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, तो उन्होंने देखा कि शनिदेव श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थे और बाहरी संसार से पूर्ण रूप से अलग थलग थे। पत्नी उनकी प्रतीक्षा करने लगी और जब प्रतीक्षा करते करते थक गई, तब क्रोधित होकर शनिदेव को श्राप देते हुए कही कि आप जिसे भी देखेंगे वह नष्ट हो जाएगा। शनिदेव का जब ध्यान टूटा तो पत्नी को श्राप मुक्त करने के लिए बहुत मनाया। पत्नी को पश्चाताप होने लगा, लेकिन श्राप वापस लेने की शक्ति उनमें नहीं थी, इसलिए शनिदेव अपना सर नीचा करके रहने लगे, ताकि किसी पर भी विपत्ति न आए।
किंवदंतियों यह भी है कि जब सूर्यदेव पत्नी छाया के पास पहुंचे तो उनकी प्रकाश से छाया ने अपनी आंख बंद कर ली, जिसके कारण शनिदेव का रंग श्याम अर्थात काला पड़ गया। शनिदेव पिता से क्रोधित होकर भगवान शंकर की घोर तपस्या की और तपस्या से शनिदेव का पूरा शरीर जल गया। शनिदेव की भक्ति से और होकर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। शनिदेव ने वरदान कहा कि मेरी पूजा मेरे पिता से अधिक हो और मेरे पिता का अपने प्रकाश का अहंकार टूट जाए। भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि आप नव ग्रहों में श्रेष्ठ रहेंगे और पृथ्वी लोक में न्यायाधीश के रूप में लोगों को कर्मों के अनुसार फल देंगे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि ग्रह की गणना अशुभ ग्रहों में की जाती है और वह नौ ग्रहों में सातवें स्थान पर रहते हैं। शनि ग्रह प्रत्येक राशि में 30 महीने तक निवास करते हैं और मकर एव कुंभ राशि के स्वामी ग्रह है। शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। वहीं शनि के गुरुत्व बल के कारण लोगों के अच्छे और बुरे विचार शनिदेव तक पहुंचते हैं और कर्म के अनुसार, लोगों को फल देते है। शनिदेव की उपासना करने से शनिदेव आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
शनि की महादशा या साढ़ेसाती का प्रभाव लोगों के जन्म के समय कुंडली में शनि की जो स्थिति होती है उसके अनुसार शनि का शुभ और अशुभ फल लोगों को मिलता है। इस वर्ष शनि 01 जनवरी से 29 मार्च 2025 तक कुम्भ राशि में रहेंगे, ऐसी स्थिति में मकर राशि, कुम्भ राशि और मीन राशि में शनि की साढ़ेसाती और कर्क राशि और वृश्चिक राशि में अढैया रहेगी। वहीं 29 मार्च 2025 से वर्षान्त तक शनि मीन राशि में रहेंगे।
जब शनि 01 जनवरी से 29 मार्च 2025 तक कुम्भ राशि में रहेंगे, तब साढ़ेसाती की स्थिति में मकर राशि बालों को उतरती हुई शनि का प्रभाव पैरों पर रहेगा। क्योंकि उतरता हुआ साढ़ेसाती शनि का प्रभाव सामान्य तौर पर शुभ फल प्रदान करता है, जिसके प्रभाव से व्यापार में वृद्धि, धन- धान्य की समृद्धि, सामाजिक मान-सम्मान, राजकीय कार्यों में सफलता, मुकदमे बाजी में विजय, कर्ज से मुक्ति मिलती है। कुम्भ राशि वालों को मध्य की साढ़ेसाती होगा, शनि के प्रभाव से धन लाभ, स्त्री-पुत्र सुख, प्रगति के मार्ग बनेंगे, स्वास्थ्य ठीक रहेगा, सम्पत्ति का लाभ होगा। मीन राशि वालों को चढ़ती हुई साढ़ेसाती शनि का प्रभाव मस्तक पर रहेगा। जिसके प्रभाव से व्यापार में प्रगति, धन-धान्य में समृद्धि, सुख- शांति, अचानक लाभ, पदोन्नति, मांगलिक कार्य बनेंगे, राजकीय क्षेत्रों में सम्मान बढ़ेगा। शनि की अढैया की स्थिति में कर्क राशि वालों को लघु कल्याणी अढैया शनि का प्रभाव रजत पाद से होने के कारण व्यापार में वृद्धि होगी, धन-धान्य में समृद्धि बढ़ेगी, सुख सम्पदा का लाभ होगा। वृश्चिक राशि वालों को लघु कल्याणी अढैया शनि का प्रभाव होगा, जिसके प्रभाव से शारीरिक कष्ट, पारिवारिक क्लेश, निजी जनों का विरोध, व्यापारिक परेशानियाँ, संतान और रोगी के कार्यों में विशेष खर्च हो सकता है।
जब शनि 29 मार्च 2025 से वर्षान्त तक मीन राशि में रहेंगे, तब साढ़ेसाती शनि कुम्भ राशि वालों की उतरती हुई शनि का प्रभाव पैरों पर होगा, जिसके प्रभाव से नौकरी एवं व्यापार में प्रगति होगी, धन धान्य की समृद्धि होगी, पुराना पैसा मिलेगा, कानूनी मामलों में सफलता, राजकीय क्षेत्र में उन्नति, शत्रु भी मित्र का काम करेंगे, पुराने लेनदेन की पूर्ति, व्यापार में कुछ नये शत्रु उभर सकते हैं, वर्षान्त में शारीरिक कष्ट कम होगा। मीन राशि वालों को शनि का कोई प्रभाव स्वर्ण पाद से हृदय में होगा। जिसके प्रभाव से निजी जन का विरोध, शत्रु संख्या में वृद्धि, घरेलू परेशानी, स्वास्थ्य चिंता, पुराने रोगों से कष्ट, भाई बन्धुओं का विरोध, बटवारे जैसी घटनायें हो सकती हैं। मेष राशि वालों को चढ़ती हुई साढ़ेसाती का प्रभाव मस्तक पर होगा। जिसके प्रभाव से व्यापार- व्यवसाय में प्रगति होगी, अधिकारियों से मेल-जोल बढ़ेगा। धन-धान्य की समृद्धि होगी। अढैया की स्थिति में सिंह राशि वालों को शारीरिक पीड़ा हो सकती है। धनु राशि वालों को शारीरिक कष्ट हो सकता है, चोट-चपेट की सम्भावना, रक्त विकार, स्त्री-पुत्र की चिंता, व्यापार में परिश्रम अधिक लाभ कम रहेगा, लेन-देन की चिंता एवं चोरी का भय रहेगा। शनि की साढ़ेसाती और अढैया की स्थिति में शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उपाय के रूप में प्रति शनिवार को तेल में अपना मुँह देखकर छायादान करना, काले घोड़े की नाल की अँगूठी बनवाकर पहनना, दक्षिणमुखी हनुमान जी के दर्शन करना, हनुमान जी के श्लोकों को पढ़ते हुए सात बार हनुमान जी की परिक्रमा करना, पीपल के वृक्ष को जल देकर सात बार परिक्रमा करना, शनि स्त्रोत का पाठ करना, शनिवार का व्रत करना और काला कंबल, उड़द की दाल, काले तिल, काला कपड़ा, लौह पात्र का दान करना लाभकारी बताया जाता है। प्रतिदिन एक माला शनि मंत्र- “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जप करने से भी लाभ होता है, बताया जाता है ।
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