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विधवा विवाह

विधवा विवाह

 जय प्रकाश कुवंर
रमेश की सरकारी नौकरी हाल ही में विद्यालय चयन आयोग द्वारा चयनित होने के बाद ग्रामीण क्षेत्र के एक हाई स्कूल में सहायक अध्यापक के रूप में लग गयी थी। उसका स्कूल शहर से काफी दूर देहात में अवस्थित था। रमेश एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था जिसका परिवार शहर में ही रहता था। वह भी शहर में ही रह कर अपनी शिक्षा पूरी किया था। शिक्षा समाप्त कर वह अनेकों जगह नौकरी के लिए तलाश किया पर इतनी आसानी से नौकरी मिल नहीं रही थी। अंत में नौकरी मिली भी तो पोस्टिंग हुई ग्रामीण और देहात क्षेत्र में, जहाँ वह कभी भी रहा नहीं था। नौकरी के अभाव में अभी तक उसने अपनी शादी नहीं की थी। अब इस नौकरी में योगदान करना उसकी मजबूरी थी क्योंकि सरकारी नौकरी का उसका उम्र लगभग समाप्त होने को था । उसने स्कूल की नौकरी में योगदान तो कर लिया, परंतु अब समस्या ठहरने के लिए घर की थी, क्योंकि अपने घर शहर से रोज आना जाना करना संभव नहीं था। साधारणतया गाँव देहात में लोग घर अपने ही इस्तेमाल में रखते हैं और भाड़े पर नहीं देते हैं। इस लिए गाँव देहात में भाड़ा का घर जल्दी मिलना संभव नहीं होता है,और वो भी किसी अकेले रहने वाले युवा पूरूष के लिए। गाँव के लोगों ने उसे उसी गाँव के एक घर का पता बताया, जो एक विधवा अधेड़ औरत का था और वह उसमें रहती नहीं थी। वह हमेशा बंद ही रहता था। कभी कभार वह औरत घर के देखभाल के लिए आती थी और एक द़ो दिन रूक कर चली जाती थी। संयोगवश अभी वो औरत आयी हुई थी अत: रमेश उसके यहाँ गया और अपनी स्थिति बताया। यह जानकर कि वह युवक एक स्कूल टीचर है और उसकी तैनाती उसके गाँव के ही स्कूल में है, उसने कुछ शर्तों के साथ घर को उसे भाड़े पर देने पर राजी हुई। उसने घर के एक कमरे को सभी जरूरी सुविधाओं के साथ उसे दे दिया। वह अगले दिन अपने मामा मामी के पास शहर में चली गई और रमेश उसके घर में यहाँ अकेला रहने लगा।
शालिनी एक पढ़ी लिखी संभ्रांत घर की लड़की थी। उसके माता पिता शहर में रहते थे। उसके माता पिता ने उसकी शादी एक बहुत ही सुयोग्य लड़के से कर दी थी, जो एक सरकारी नौकरी में उच्च पद पर था। उस लड़के मोहन के पिता जी गुजर चुके थे और केवल माँ थी, जो शहर से दूर अपने पुश्तैनी मकान में रहती थी। मोहन शादी करके शालिनी को अपने गाँव के घर में ही लाया था। मोहन और शालिनी नौकरी के दरमियान शहर में ही सरकारी आवास में रहते थे। कभी कभी काम से छुट्टी मिलने पर अपनी माँ को देखने गाँव अपने घर आ जाया करते थे।शालिनी के इच्छा के विरुद्ध मोहन ने उसे नौकरी नहीं करने दिया। उनके शादी के पांच साल गुजर जाने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं था। पोता पोती का मुंह देखने की इच्छा मन में लिए हुए ही मोहन की माँ एक दिन गुज़र गयी। अब शालिनी और मोहन के लिए गार्जियन के रूप में शालिनी के मामा मामी ही रह गए थे, जो उसी शहर में अपने मकान में रहते थे। अब यदा कदा मोहन और शालिनी मामा मामी के यहाँ जाते थे अथवा अपने गाँव के धर चले जाते थे।
एक दिन सरकारी दफ्तर से अपने आवास जाते समय मोहन के गाड़ी का एक्सिडेंट हो गया और हास्पिटल में लाख प्रयत्न के बावजूद भी वह जिन्दा नहीं बच सका। अब शालिनी का जीवन एकाकी हो गया। मोहन के गुजर जाने के बाद शालिनी को सरकारी आवास छोड़ देना पड़ा। अब उसके पास उसका अपना घर उसके सास ससुर का गाँव वाला घर ही रह गया। इस बीच उसके माता पिता के नहीं रहने की हालात में उसके मामी मामा, अपने घर के अलावा उसके माता पिता के शहर वाले घर पर भी कब्जा कर के रहते थे। उन लोगों ने शालिनी के इस दुख की घड़ी में उसे गाँव न जाने देकर अपने पास शहर में ही रखा।
शालिनी अब शहर में अपने मामा मामी एवं उनके परिवार के साथ रहती थी और बीच बीच में अपने गाँव के घर भी एक दो दिन के लिए हो आती थी। मामा मामी तथा उनके बच्चे बाद में शालिनी के साथ घर के नौकरों जैसा व्यवहार करने लगे। अब घर का सारा काम शालिनी को ही करना पड़ता था। जवानी के वैध्व्य का दिन जल्दी कटता नही है। शालिनी की भी वही हालत हो रही थी। वह भीतर भीतर रोती रहती थी। परंतु उसके दुख को समझने वाला वहाँ कौन था। सब अपने में लगे हुए थे और घर का काम करने के लिए एक मुफ्त नौकरानी मिल ही गयी थी। इस तरह शालिनी का दुखमय जीवन कट रहा था। अब शालिनी काम करते करते थक भी जाती थी तो भी मामी मामा को उसके उपर जरा सा भी तरस नहीं आता था। हद तो तब हो गया जब मामा मामी के लड़कों की शादी के बाद नयी बहुओं ने भी शालिनी के उपर अत्याचार करना शुरू कर दिया। कहने को तो वे सब अपने थे, लेकिन केवल अपने मतलब तक ही शालिनी उनकी अपनी थी।
अब शालिनी से दुख न सहा गया और एक दिन वह अपने सास ससुर और पति के गाँव वाले घर में रहने चली आई। यहाँ एक घर में शिक्षक रमेश रहता था और बाकी के पूरे मकान में शालिनी रहती थी। रमेश को भी यह जानकारी हुई तो वह काफी खुश हुआ, क्योंकि वह भी इतने बड़े मकान में अकेले रहता था। कुछ दिनों तक शालिनी और रमेश में कोई बात नहीं होती थी, हालांकि कभी कभार वे दोनों एक दूसरे को देख लेते थे। अब रमेश को घर का भाड़ा शालिनी के पास शहर में नहीं भेजना पड़ता था। अब वह शालिनी से मिल कर ही उसे उसका घर किराया दे दिया करता था। उस दिन शालिनी से कुछ बात करने का मौका भी मिल जाता था। इस प्रकार दिन और महीने बीतते गये। अब शालिनी अपने घर में रहते हुए खुश थी।
एक दिन रमेश जब स्कूल से लौट कर घर आया तो देखता है कि शालिनी के तरफ का घर का दरवाजा खुला हुआ है और शालिनी घर में बिस्तर पर पड़े हुए कराह रही है। वह शालिनी से अनुमति लेकर उसके कमरे में गया तो देखता है कि शालिनी बुखार से तड़प रही है और उठ कर पानी भी नहीं पी सक रही है। उसने शालिनी का हाल चाल जाना और उसके शरीर पर चादर ओढ़ने के लिए दिया। उसने उसे पानी पिलाया और पास के बाजार से बुखार की दवाइयाँ लाकर दिया। वह वही उसके पास बैठकर उसकी निगरानी करता रहा। अपने लिए जो खाना बनाया था उसे गरम करके उसे खिलाया। रात भर वह शालिनी के सिरहाने बैठ कर जागते रहा। शालिनी की जब आंखें खुलती थी, तो देखती थी कि रमेश पास बैठे उसे देख रहा है और उंघ रहा है। दवा खाने और रमेश द्वारा सेवा करने के चलते शालिनी एक दो दिन में भली चंगी हो गई। उसे अब महशुस हुआ कि रमेश एक भला इंसान है। वह धीरे धीरे रमेश के पास आने लगी और उसे अपना हितैषी समझने लगी।
अब शालिनी रमेश को अपने कमरे में आने के लिए अनुमति की कोई जरूरत नहीं समझती थी और वह खुद भी बेधड़क रमेश के कमरे में चली जाती थी। धीरे धीरे उनकी नजदिकीयाँ बढ़ने लगी। रमेश ने अब तक शादी नहीं की थी। इस दरमियान वह जान गया था कि शालिनी एक विधवा लड़की है। इसके बावजूद भी शालिनी के व्यवहार और रहन सहन से रमेश बहुत प्रभावित हुआ और मन ही मन वह शालिनी को चाहने लगा। इधर शालिनी ने भी महशुस किया कि रमेश एक सज्जन लड़का है, अन्यथा वह एक अकेली लड़की को अपने घर में पाकर कुछ गलत व्यवहार कर सकता था। इस लिए वह भी रमेश को दिल से चाहने लगी। दोनों ने ही मन ही मन एक दूसरे का दिल जीत लिया था, परंतु इसके आगे कोई कुछ मुंह से कहता नहीं था।
इधर बेटा की नौकरी पक्की हो जाने के बाद रमेश के माता पिता उसकी शादी करने के लिए लड़की की तलाश में लग गए थे। वह उसकी शादी शहर में ही करना चाहते थे। एक बार वो दोनों किसी मौके पर रमेश के पास उसके घर पर गाँव में आए थे। उन लोगों ने रमेश के साथ शालिनी को भी देख लिया था। शालिनी उन्हें देखने में बहुत अच्छी लगी। जब रमेश ने उन्हें शालिनी के बारे में बताया कि वह इन्हीं के घर में किराये पर रहता है, तो वो बड़े खुश हुए। शालिनी ने भी रमेश के माता पिता की खुब खातिरदारी की। वो लोग शालिनी के व्यवहार से इतने प्रभावित हुए कि वे मन ही मन शालिनी को अपनी बहू के रूप में देखने लगे। जाते समय उन्होंने रमेश से पूछा कि उसे शालिनी कैसी लगती है। इस पर रमेश ने शालिनी की खुब प्रशंसा की और शालिनी के बारे में वह जितना जानता था, सब बताया। वह उन्हें यह भी बताया कि वह शालिनी से शादी करना चाहता है।
रमेश के माता पिता के चले जाने के बाद एक दिन रमेश ने शालिनी से अपने प्यार का खुलासा किया और उससे अपने शादी की बात की। शालिनी को लगा जैसे रमेश ने उसके मन की बात कह दी हो। वह हामी भरते हुए अपने विधवापन की बात भी बताई। इस पर रमेश बोला कि मैं सब कुछ जान चुका हूँ। और सब कुछ जानते हुए भी तुमसे प्यार करता हूँ और शादी करना चाहता हूँ। जहाँ तक मेरे माता पिता का सवाल है तो इस बात से वो भी वाकिफ़ हो चुके हैं और तुम्हेँ वो भी अपनी बहू बनाना चाहते हैं। उनका मानना है कि शादी के बाद एक जवान या अधेड़ लड़की का विधवा होना एक कुदरती फैसला है, लेकिन उसे घुट घुट कर मरने के लिए हम इंसान और हमारा समाज बाध्य करता है। हर ऐसी विधवा को अपना जीवन जीने का अधिकार हैऔर अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। और पुनर्विवाह भी कुदरती फैसला ही होता है। शालिनी विधवा होते हुए भी हमारे घर की बहू बनने योग्य है, क्योंकि तुम उसे प्यार करते और चाहते हो और वह तुम्हें प्यार करती, चाहती और तुमसे शादी करना चाहती है
रमेश के माता पिता के इस निर्णय के बाद दोनों शालिनी और रमेश सामाजिक तौर पर शादी करके पति पत्नी बन गए और खुशी खुशी अपना गृहस्थ जीवन बिताने लगे।
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