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मुफ़्त में माल कब तक लुटायेंगे,

मुफ़्त में माल कब तक लुटायेंगे,

गधों को हलवा कब तक खिलायेंगे?
मुफ़्त का माल बाँट भिखारी बनाते,
ऐसे लोग देश को कब तक चलायेंगे?



हो गया चुनाव आयोग भी बिल्कुल निकम्मा,
न्यायालय का न्याय भी हुआ कुंद और धीमा।
सत्ता के लुटेरों ने देश की फ़िज़ा ऐसी बना दी,
मुल्क का आवाम हुआ लालची और कमीना।



आरक्षण की बैशाखियों पर निकम्मे दौड़ते,
होनहार युवाओं का भविष्य पैरों तले रौंदते।
आंतकी पलने लगे सियासत की जमीं पर,
सियासत का रूख अब लंगड़े घोड़े मोड़ते।


बचा नहीं नियंत्रण, राजनीतिक दलों पर किसी का,
भाषा हुई अमर्यादित, नहीं रहा संयम किसी का।
वोट की ख़ातिर लुभाने की होड़, सब और मची है,
बिजली पानी मकान मुफ़्त, नही नियंत्रण किसी का।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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