नेह अंकुरित हो रहा,तुम्हें देखकर
अंग प्रत्यंग नव यौवन,घट पट उमंग तरंग ।
संवाद पटल माधुर्य,
सरित खुशियां अंतरंग ।
बारिश बूंदों सम आनंद,
अपनत्व स्पर्श रेख पर ।
नेह अंकुरित हो रहा, तुम्हें देखकर ।।
स्वर मधुरिमा रिमझिम,
जीवन उत्सविक अनुपमा ।
षोडश श्रृंगार मनोरम,
दुल्हन सा प्रणय रमा ।
रग रग मिलन तरूणाई ,
तृषा तृप्ति सुलेख अधर ।
नेह अंकुरित हो रहा,तुम्हें देखकर ।।
हिय पटल नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द सुरभि चाह ओतप्रोत,
चंद्र सदृश मुस्कान संग ।
निशि दिन रमणीक प्रभा,
छवि वसित उन्मेख पर ।
नेह अंकुरित हो रहा,तुम्हें देखकर ।।
अति सुरभित मन उपवन ,
विचार तरंगिनी अनुपम ।
चाल ढाल मोहक सोहक,
हाव भाव मंगल उत्तम ।
तन मन मंदिर सा पावन,
अनंत आनंद स्नेह आरेख़ भर ।
नेह अंकुरित हो रहा,तुम्हें देखकर ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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