देखो आई,संध्या रानी
गगन अंतर सिंदूरी वर्ण,हरितिमा क्षितिज बिंदु ।
रवि मेघ क्रीडा मंचन,
धरा आंचल विश्रांत सिंधु ।
निशि दुल्हन श्रृंगार आतुर ,
श्रम मुख दिवस कहानी ।
देखो आई, संध्या रानी ।।
मंदिर पट सांझ आरती,
मधुर स्वर घंटी घड़ियाल ।
हार्दिक आभार परम सत्ता,
परिवेश उत्संग शुभता ढाल ।
परिवार संग हास्य किलोल ,
आभा मंडल खुशियां रवानी ।
देखो आई,संध्या रानी ।।
चौपाल नुक्कड़ दृश्य अनूप,
मैत्री परिध हंसी ठिठोली ।
प्रस्थान बेला निज ठोर ,
झोपड़ अंदर महल रंगोली ।
अंग प्रत्यंग यौवन अहसास ,
चाल ढाल मलंग मस्तानी ।
देखो आई, संध्या रानी ।।
तन मन नव आशा ज्योत ,
बेहतर कल भव्य कल्पना ।
विगत त्रुटि सुधार प्रयास,
ध्येय आरेख उमंगी अल्पना ।
विभा सह परिणय नींद ,
भोर वंदन भाग्य जगानी ।
देखो आई, संध्या रानी ।।
*कुमार महेंद्र*
(स्वरचित मौलिक रचना )
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