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जमाने को खल गया

जमाने को खल गया

नजरें उठाकर चलना, जमाने को खल गया,
सरे राह मुस्कराना, जमाने को खल गया।
नूर ए फलक कहाती, जो लब सिले रहते,
गलत का विरोध करना, जमाने को खल गया।
सिर पर रही ओढनी, जिस्म नंगा कर दिया,
सच को बताना सच, जमाने को खल गया।
झुककर सलाम करना, जुल्म चुप ही सहना,
गर्दन उठाकर चलना, जमाने को खल गया।
खेलते जो जिस्म से, वो रहनुमा थे कौम के,
नफरत मेरा दिखाना, जमाने को खल गया।
कर दिया जुदा मुझको, तीन तलाक बोलकर,
हलाला पर आवाज उठाना, जमाने को खल गया।

अ कीर्तिवर्धन
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