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सख़्त खुरदुरे लहज़े

सख़्त खुरदुरे लहज़े

सुनीता सिंह
कुछ सख़्त खुरदुरे लहज़ों की दिल पर शेष खराशे हैं।
परछाई लिपटी यादों से हमने संग तराशे हैं।।
गहरी ख़ामोशी उग आए वक्त के संगेमरमर पर।
कब गुलशन पतझड़ हो सब कुदरत के खेल तमाशे हैं।।
कुहरे की तारीकी में कुछ भीगे बादल ले आयें।
बज़्म सजायें अश्कों की कुछ यादें शीर बताशे हैं।।
शब ने जुन्हाई भी ली अब जां की शमें जलानी हैं।
जुगनू से रौशन करके दिल देने खुद को दिलासे हैं।।
ज़ज़्बातों ने दिल को जैसे क़फ़स अता कर डाला है।
बंधन में इक धागे के कितने बेज़ार नफासे हैं॥
रूहानी फितरत पर करता ज़ेहन भी है सजदाएं।
कैसी आतिश उफ़क़ गिरी है दहकर धनक उदासे हैं।।
रफ़्ता-रफ़्ता बाब-ए-इश्क़ में था अंदाज़ तगाफुल का।
समझाये दिल खुद को कैसे अब शफ़्फ़ाक़ क़ज़ा से हैं ॥
सुनीता सिंह
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