ब्याह बना व्यापार
संजय जैन "बीना"
गोरा सुंदर रूप है तेरा
पर दिल उतना ही काला है।
मन चंचल तेरा बहुत है
पर दिल उतना ही छोटा है।
खोट अगर हो दिलमें तेरे तो
प्यार नही तुम कर सकते हो।
मौके का फायदा उठाकर
दिलकी भावनाओं से खेलते हो।।
आज के युग में देखो तो
प्यार-मोहब्बत खेल बन है।
शादी-ब्याह जैसे पवित्र बंधन भी
एक व्यवसाय जैसा बन गया है।
शर्तों के आधार पर देखो
विवाह आदि हो रहे है।
पैसे पहले लेकर दलाल आदि
शादी ब्याह करवा रहे है।।
कलयुग का ये खेल निराला
जिसमें लड़के ही फस रहे है।
मोटी रकम लेकर लड़कियाँ
देखो लड़को को छल रही है।
प्यार का नाटक कुछ दिन करके
जान उन पर लूटाती है।
फिर दिल पर घाव देकर उनके
जीवन बर्बाद वो कर रही है।।
कुछ दिन साथ व्यता कर वो
आरोप लगाना शुरु करती है।
कभी सास तो कभी नंद और
कभी पति पर आरोप लगती है।
अपने अनुरूप महौल बनाकर
खेल शुरू ये करती है।
ताकि सम्पैथी मिलने लगे इनको
अपने मोहाल्ला और पड़ोसियों की।।
कभी मम्मी-पापा को फोन करती है
तो कभी भैया-भाभी को बतलाती है।
अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का
बिना बजह के खूब बखान करती है।
ताकि इनका मकसत पूरा हो जाये
जिसके लिए ब्याह करके आई है।
और धमकी देकर और फसाकर
फिर पैसों में समझौता करती है।।
जय जिनेंद्र
गोरा सुंदर रूप है तेरा
पर दिल उतना ही काला है।
मन चंचल तेरा बहुत है
पर दिल उतना ही छोटा है।
खोट अगर हो दिलमें तेरे तो
प्यार नही तुम कर सकते हो।
मौके का फायदा उठाकर
दिलकी भावनाओं से खेलते हो।।
आज के युग में देखो तो
प्यार-मोहब्बत खेल बन है।
शादी-ब्याह जैसे पवित्र बंधन भी
एक व्यवसाय जैसा बन गया है।
शर्तों के आधार पर देखो
विवाह आदि हो रहे है।
पैसे पहले लेकर दलाल आदि
शादी ब्याह करवा रहे है।।
कलयुग का ये खेल निराला
जिसमें लड़के ही फस रहे है।
मोटी रकम लेकर लड़कियाँ
देखो लड़को को छल रही है।
प्यार का नाटक कुछ दिन करके
जान उन पर लूटाती है।
फिर दिल पर घाव देकर उनके
जीवन बर्बाद वो कर रही है।।
कुछ दिन साथ व्यता कर वो
आरोप लगाना शुरु करती है।
कभी सास तो कभी नंद और
कभी पति पर आरोप लगती है।
अपने अनुरूप महौल बनाकर
खेल शुरू ये करती है।
ताकि सम्पैथी मिलने लगे इनको
अपने मोहाल्ला और पड़ोसियों की।।
कभी मम्मी-पापा को फोन करती है
तो कभी भैया-भाभी को बतलाती है।
अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का
बिना बजह के खूब बखान करती है।
ताकि इनका मकसत पूरा हो जाये
जिसके लिए ब्याह करके आई है।
और धमकी देकर और फसाकर
फिर पैसों में समझौता करती है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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