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त्राटक साधना

त्राटक साधना

सुरेन्द्र कुमार रंजन,

त्राटक अपने बहिर्मुखी मन को अंदर की ओर ले जाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसमें बाहरी वस्तु का सहारा लेकर उसके माध्यम से मन को अंदर ले जाने का अभ्यास किया जाता है।त्राटक का अर्थ है, किसी वस्तु को, बिना पलक झपकाये पुतलियों को हिलाये लगातार एकटक देखते रहना। त्राटक के अनेक साधन हो सकते है, जैसे स्फटिक पर त्राटक, इष्ट देवता के चित्र पर त्राटक, काले बिन्दु पर, जल पर, आसमान पर, तारे पर, चन्द्रमा पर, सूर्य पर, प्रकाश पर, दीपक एवं मोमबती आदि पर।

त्राटक साधना की विभिन्न विधियां :-

1.) प्रथम अभ्यास, चित्र पर त्राटक क्रिया :-


अपने इष्ट या सद्‌गुरु की तस्वीर को अपने सामने इतनी ऊंचाई पर रखें कि बैठने पर तस्वीर ठीक आपके नेत्र के सामने रहे। आसन पर बैठने के बाद नेत्र और चित्र के बीच में कम से कम एक फुट या दो फुट का फासला होना चाहिए। आसन पर समासन, सिद्धासन, प‌द्मासन एवं गौ आसन पर बैठकर अपने शरीर के मेरूदण्ड को 90 डिग्री अर्थात् सीधा रखकर बैठें। दोनों हाथ को पैर के घुटनों पर रख लीजिए अथवा दोनों हथेलियों को शरीर के मूलाधार के पास एक-दूसरे के ऊपर रखें और अपलक (बिना पलक गिराए) नेत्रों से चित्र को निहारिये। जब नेत्र दुखने लगे और उसमें पानी भर जाये, तो कुछ क्षणों के लिए नेत्र बन्द कर लीजिए। पुनः नेत्र खोल कर चित्र को निहारिये। इस प्रकार आठ-दस मिनट तक अभ्यास करें। यह अभ्यास लगातार पन्द्रह दिनों तक करें। इसके बाद अब नेत्र को बंदकर बंद आखों से चित्र को उसी प्रकार देखने का प्रयत्न कीजिये। कल्पना शक्ति का सहारा लेकर चित्र को बंद नेत्र से अपने सामने रखी हुई इष्ट एवं सद्‌गुरु की तस्वीर को अपने आत्मा में स्थापित करने का प्रयत्न करना चाहिए। इस अभ्यास में मन से लड़ने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। यदि त्राटक क्रिया करते समय इष्ट व सद्‌गुरु के सिवाय दूसरा विचार आता है तो परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। पुनः प्रयास करें, एक दिन ऐसा अनुभव होगा कि आपके समक्ष स्वतः इष्ट व सद्‌गुरु की तस्वीर दिखाई पड़ेगी। इस तरह का अभ्यास क्रम लगभग एक माह लगातार करना चाहिए। इसके बाद अब त्राटक क्रिया दोनों नेत्र के बीच में अर्थात् दोनों पुतलियों के बीच में करना चाहिए।


2.) दीपक या मोमबती पर त्राटक :-


पूर्व की तरह ही आसनादि के माध्यम से अभ्यास जारी रहेगा। विशेषतः इस क्रिया को अंधेरे में ही करना चाहिए। दीपक में घी, तिल, सरसों तेल या रेड़ी का तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक या प्रकाश पर त्राटक करने से नेत्र के रोग दूर होते हैं। नेत्र की ज्योति बढ़ती है तथा तेजोमय दृष्टि प्राप्त होती है।


3 ) भ्रू मध्य पर त्राटक :-


पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। दोनों हाथ मुद्रा में घुटनों के ऊपर रखें। दोनों नेत्र खुला रहेगा। अब अपने भ्रू मध्य या दोनों भौहों के बीच के स्थान में बिना पलक झपकाएं अपनी दृष्टि टिकाए रखें। बीच-बीच में विश्राम के लिए प्रारम्भ में कुछ क्षणों के लिए नेत्र बन्द की जा सकती है, लेकिन प्रयास यही रहेगा कि लगातार दृष्टि भ्रू मध्य पर रहे।


4.) नासिकाग्र पर त्राटक :-


यथावत आसन में बैठकर अपनी दृष्टि नाक के अग्र भाग पर ले जायें। अन्य नियम पूर्ववत रहेंगे। नासिका के ऊपरी सिरे पर लगातार बिना पलक गिराए लगातार देखते रहें। यह अभ्यास पाँच-छः मिनट तक लगातार करें। इसका अभ्यास दिन या रात्रि में कभी भी कर सकते हैं।


5.) नभोदृष्टि पर त्राटक : -


आसन पर ध्यान मुद्रा में बैठकर खुले आसमान की ओर गर्दन ऊपर कीजिए। सर्वप्रथम आसमान को देखिये, फिर भ्रू मध्य को देखिये। इसके बाद थोड़े देर के लिए नासिकाग्र पर बिना पलक झपकाएं दृष्टि टिकाए रखें।


6.) स्वरूप पर ध्यान :-


ध्यान के लिए अपने आसन पर बैठ जाइये। अपने सामने एक आईना उसी प्रकार रख लीजिये, जैसे प्रथम अभ्यास में इष्ट व सद्‌गुरु के चित्र को रखते हैं। आईना ठीक नेत्र के सामने हो। अब आईना पर अपने प्रतिबिम्ब पर उसी प्रकार त्राटक का अभ्यास कीजिये जिस प्रकार इष्ट व सद्‌गुरु के चित्र पर किया जाता है। अन्य नियम वही रहेंगे। इस अभ्यास के सिद्ध हो जाने पर सूक्ष्म शरीर को पर काया प्रवेश करने की विधि जान जाता है।


7.) स्फटिक पर त्राटक अभ्यास :-


स्फटिक एक पारदर्शी पत्थर है। यह जल से भी अधिक पारदर्शी होता है। यह पहाड़ों व चट्टानों में पाया जाता है। आजकल इस पत्थर की प्राप्ति बहुत ही कठिन है। यदि यह पत्थर किसी को मिल जाये तो उसका प्रयोग साधना के लिये करना चाहिये। उसे किसी धातु के स्टैंड में मढ़वा लेना चाहिए। बिना पलक झपकाये स्फटिक के किसी बिन्दु पर त्राटक का अभ्यास करना चाहिए। इस अभ्यास को लगातार एक माह तक करना चाहिए।


8.) शिवलिंग पर त्राटकः-


शिवलिंग पर त्राटक सर्वोत्तम है। शिवलिंग को पीतल या चाँदी के बर्तन में स्थापित कर किसी उच्च स्थान पर रख दें। अगर शिवलिंग काले पत्थर का हो तो बहुत अच्छा है। शिवलिंग पर पहले जल की धारा डालिये, उसके बाद साफ कपड़े से पोंछकर उस पर त्राटक क्रिया करें। शिवलिंग पर त्राटक क्रिया का बड़ा महत्त्व है। इसका संबंध हमारे शरीर में पहले से ही स्थित दो शिवलिंग से है, जो शक्ति के दो महान केन्द्र है। शरीर के ये दो लिंग हैं, स्पयंभु और इतराख्य लिंग। एक का स्थान मूलाधार चक्र में है और दूसरा का स्थान आज्ञा चक्र में है। काला पत्थर शिवलिंग पर त्राटक करने से उसका प्रभाव दृष्टि शारीरिक नाड़ियों के माध्यम से आज्ञा चक्र पर पड़ता है और आज्ञा चक्र में ज्योतिर्मय शिवलिंग सूक्ष्म रूप में प्रगट होता है।


9.) सूर्य पर त्राटक :-


सद्‌गुरु के आदेश के बिना सूर्य त्राटक क्रिया नहीं करनी चाहिए। सूर्य त्राटक का अभ्यास सीधे सूर्य पर दृष्टि डालकर नहीं करना चाहिए। जैसे ही सूर्य उगने का समय हो उसी समय बाल सूर्य पर त्राटक करना चाहिए। एक बड़े पात्र में जल भर लें, सूर्य की छाया पर त्राटक का अभ्यास करें। नग्न नेत्र से न देखकर काला चश्मा का प्रयोग करें। सूर्य पर त्राटक करने से अलौकिक ज्योतिर्मय पुरुष के दर्शन होते हैं। वही रक्षक देवता और इष्ट बनकर साधकों का मार्ग दर्शन करते हैं।


10.) चन्द्रमा पर त्राटक :-


यह त्राटक चन्द्र दर्शन होने पर ही किया जाता है। पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व व तीन दिन पश्चात् तक चन्द्रमा पर त्राटक किया जा सकता है। विचारों को रोककर निर्निमेष नेत्रों से चन्द्रमा को देखते रहना, यही चन्द्रमा पर त्राटक की विधि है।


11.) बिन्दु पर त्राटक :-


दृष्टि दोष को सुधारने के लिए बिन्दु पर त्राटक बहुत ही लाभप्रद है। एक फुट चौड़ा और एक फुट लम्बा एक काला कागज का टुकड़ा लें। एक-दूसरे लाल कागज को काले कागज के ठीक बीच में चिपका दें। दिन के प्रकाश में इस काले कागज के सफेद गोल बिन्दु के ऊपर त्राटक का अभ्यास करें। यह कागज या तो दीवाल पर टांग दें या शीशे में फ्रेम कर आवश्यकतानुसार ऐसे टांग दें कि गोल लाल बिन्दु नेत्रों के ठीक सामने पड़े। नेत्र और बिन्दु की दूरी दो या तीन फीट हो।


12) पान पर त्राटक :-


नेत्रों में जलन होने पर पान पर त्राटक का अभ्यास करना चाहिए।पान का एक बड़ा पत्ता लेकर जल से उसके चिकने तरफ एक गोल काले बिन्दु बना ले। प्रातः सूर्योदय के पूर्व या सूर्यास्त के बाद एक मोमबत्ती जलकर अपनी बायीं ओर रखें और पान का पता अपने बांये हाथ या चौकी पर रखें। मोमबत्ती इस प्रकार रखें कि उसका प्रकाश काले बिन्दु पर हीं पड़े लेकिन नेत्र पर न पड़े। अब काले बिन्दु को एक टक निहारे यथा दो, चार, छः या दस मिनट तक। इस अभ्यास को प्रतिदिन एक या दो बार अवश्य करें।


13.) छाया पर त्राटक :-


अपनी छाया पर त्राटक एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा गुप्त क्रिया है। छाया पुरुष की सिद्धि से साधक को दुर्घटनाओं का पूर्व ज्ञान प्राप्त होता है। मृत्यु की सूचनाएं इसी छाया-पुरुष को सिद्ध करने से प्राप्त होती है। छाया सिद्धि के लिये साधना का एक ही समय निश्चित कर लेना चाहिए।

सूर्य के प्रकाश की ओर पीठ करके सीधे खड़ा हो जायें जिससे आपकी छाया ठीक आपके सामने पड़े।अपनी छाया के गर्दन के भाग पर त्राटक क्रिया कीजिये। यह क्रिया कम से कम बीस मिनट तक कीजिये। इसके बाद अपने सामने के आकाश में अपनी छाया का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ेगा। वह छाया कुछ देर के बाद लुप्त हो जायेगी। छः महीने लगातार नियमपूर्वक छायोपासना करने से छाया सिद्धि होती है।


छाया में दिखाई पड़ने वाले संकेतों को समझाने की भी विशेष विधि यथा यदि छाया का सिर कटा हुआ दीखे तो अपनी मृत्यु, बाया हाथ कटा हो तो स्त्री की मृत्यु, दाहिना तो परिवार, मित्र व सगे संबंधी की मृत्यु। इस छाया का रंग भी बदलता रहता है। सिद्धि प्राप्त होने पर यही छाया हमेशा साथ में रहती है और मित्र की तरह हमेशा घटनाओं से सावधान करते रहती है। परन्तु इस छाया से कोई कल्याण नहीं होता और न कोईआध्यात्मिक लाभ ही होता। वह न तो सलाह देती है और न मुक्ति और रक्षा का उपाय ही बतलाती है, जैसा कि देव शक्तियाँ और देवी शक्तियाँ करती हैं।


14.) यौगिक चक्रों पर त्राटक :-


मानव शरीर के अंदर शक्ति के अनेक केन्द्र हैं जिसमें सात को मुख्य मानते हैं। यह शक्ति केन्द्र मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक होता है। ये चक्र बड़े शक्तिशाली होते हैं। त्राटक क्रिया इन्हीं केन्द्रों पर चक्रवार ध्यानरत होकर करें। एक-एक चक्र पर त्राटक क्रिया करने से एक-एक सिद्धि प्राप्त होती है।


त्राटक की कुछ महत्त्वपूर्ण विधियों को ऊपर वर्णन किया गया है। त्राटक साधना में रुचि रखने वालों को इन अभ्यासों में से कोई भी एक त्राटक अभ्यास के लिए चयन कर लें। इससे मन पर नियंत्रण एवं चित्त वृत्ति के एकाग्र होने से भौतिक अथवा आध्यात्मिक, किसी भी प्रकार की सफलता प्राप्त की जा सकती है।


सुरेन्द्र कुमार रंजन,(मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र के सौजन्य से )
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