दिल गाता चले गीत, चाहें तान नहीं है।
सुनीता सिंहदिल गाता चले गीत, चाहें तान नहीं है।
तो क्या जो इसको लय, की पहचान नहीं है।।
वादियों फिजाओं में,बह रही हवाओं में;
मौन साधती पल में, गूंजती दिशाओं में;
निर्झर के कल- कल में, किरणों की हलचल में,
दिल संगीत की लहर, से अनजान नहीं है।।
उर्मियों के ताप को, सर्दियों के भाप को;
बहे जो मधुमास में, मधु मलय के माप को;
अहसास के तराजू, पर तौले है ये दिल,
मगर हुनर पर अपने, ये हैरान नहीं है।।
लहर सिंधु में चलती, बन कहर हृदय पलती।
तरंग जैसे चाहत, ओझल हुई निकलती।।
गाये जा ऐ दिल तू, तज के तम का घेरा,
क्या खुल कर के जीने, का अरमान नहीं है?
दिल गाता चले गीत, चाहें तान नहीं है।
तो क्या जो इसको लय, की पहचान नहीं है।।
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