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क्या हाल सुनाऊँ में

क्या हाल सुनाऊँ में

दिलका हाल बताऊँ क्या
कहते हुए शर्म आती है।
मन की व्यथा भी मेरी
कुछ ऐसा बताती है।
जो दिलकी बातें सुनता है
पर दिलको नही समझती है।
पर खुदकी किस्मत पर वो
सदा ही रोता रहता है।।


मानव की है कुछ विशेषताए
जो मानव ही दिखलाता है।
मन की बातें सुनकर वो
मन को ही सहलाता है।
दिल दिमाग से सोचकर
दिलको वो बहलाता है।
प्यार मोहब्बत वो करता है
पर कहने से वो डरता है।।


दिन रात सोच-सोच कर
एकाकी सा बन जाता है।
प्यार की छोटी-छोटी बातें
उससे कहने को वो डरता है।
जिससे वो करता है प्यार
पर इजहार नही कर पाता है।
बस उसके बारे में सोचकर
याद उसे ही करता है..।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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