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कुम्भ मेला

कुम्भ मेला

 जय प्रकाश कुंवर
प्रयागराज कुम्भमेला इस साल १३ जनवरी २०२५ से २६ फरवरी २०२५ तक लगने जा रहा है। यह महाकुम्भ मेला दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। इस समागम में मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थ यात्री शामिल होते हैं । उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने वाला यह महाकुम्भ मेला गंगा , यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम पर लगता है। इस मेले में इस बार छ: महत्वपूर्ण त्योहार और तिथियों पर शाही स्नान होने का आयोजन किया गया है, जो इस प्रकार है :-
१. पौष पूर्णिमा, दिनांक १३.१.२०२५ , दिन सोमवार।
२. मकर संक्रांति, दिनांक १४.१.२०२५ , दिन मंगलवार।
३. मौनी अमावस्या ( सोमवती ) , दिनांक २९.१.२०२५ ,
दिन बुधवार।
४. वसंतपंचमी, दिनांक ३.२.२०२५ , दिन सोमवार।
५. माघी पूर्णिमा , दिनांक १२.२.२०२५ , दिन बुधवार।
६. महाशिवरात्रि, दिनांक २६.२.२०२५ , दिन बुधवार ।
हिन्दू धर्म में कुम्भ मेला एक धार्मिक तीर्थ यात्रा है, जो १२ वर्षों के दौरान चार बार और चार पवित्र स्थलों पर मनायी जाती है। यह मेला चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थ स्थलों में से एक के बीच घुमता रहता है। जैसा कि नीचे दिया गया है :-
१. हरिद्वार ,उतराखंड में, गंगा नदी के तट पर
२. उज्जैन , मध्यप्रदेश में, शिप्रा नदी के तट पर
३. नासिक, महाराष्ट्र में, गोदावरी नदी के तट पर
४. प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में, गंगा, यमुना और पौराणिक
अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर।
कुम्भ का शाब्दिक अर्थ घड़ा , कलस, सुराही अथवा वर्तन होता है। और मेला से एक साथ मिलने या चलने का बोध होता है। कुम्भ की उत्पत्ति बहुत पुरानी है। यह उस समय की बात है जब समुद्र मंथन के दौरान अमरता को प्रदान करने वाला अमृत कलस समुद्र से निकला था। इस कलस के लिए देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। अमृत कलस को अधिक शक्तिशाली असुरों से बचाने के लिए इसकी सुरक्षा की जबाबदेही चार देवताओं, बृहस्पति, शनि, सूर्य और चन्द्र को सौंपी गई थी । ये चारों देवता असुरों से अमृत कलस को बचाकर भागेऔर इस दरमियान असुरों ने देवताओं का पीछा १२ दिन और रातों तक किया। पीछा करने के दौरान देवताओं ने अमृत कलस को चार जगह हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में रखा जहाँ कलस से अमृत की कुछ बूंदें गिर गई । इस पवित्र समारोह की स्मृति में ही हर १२ साल में इन चार जगहों पर कुंभ मनाया जाता है।
कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने पर यह कुंभ मेला लगता है। बृहस्पति को अपनी कक्षा में भ्रमण करने में १२ साल का समय लगता है। यही कारण है कि कुंभ मेला १२ साल के अंतराल पर लगता है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ के दौरान स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों और बुराईयों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ के समय गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है।
इस साल प्रयागराज में लगने वाला कुंभ मेला को महाकुंभ माना जा रहा है, क्योंकि ज्योतिषिय और खगोलीय घटनाओं के अनुसार निर्धारित किया गया यह महाकुंभ मेला इस बार १४४ वर्षों के बाद लग रहा है, और यही कारण है, जिससे इसे महाकुंभ मेला का दर्जा दिया गया है। महाकुंभ में स्नान करने से क‌ई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे मोक्ष प्राप्ति का सुनहरा अवसर माना जाता है।


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