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दृष्टि मूलगत मानवता का संबल

दृष्टि मूलगत मानवता का संबल

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
कालदेवता वज्रलेखनी से जो लिख देता है,
उसे मिटाने का कलंक जो अपने सिर लेता है;
                            वह हिटलर-जैसा है पागल ।

अक्षर-अक्षर अंकित जो रहता है विश्व-पटल पर,
नामुमकिन हरताल फेरना, चाहे हो दशकन्धर;
                उसे निगल जाता पापों का दलदल।

सत्ता के भूखे ईहामृग सत्य-शत्रु सर्वंकष,
धर्मध्वजियों के डमरू पर नाचे जनता निर्वश;
                गड़े हुए मुर्दे उखाड़ता खल-बल।
 
सत्य प्राण है विश्व-धर्म का,धर्म सनातन शाश्वत,
मूलधर्म अक्षयवट, सारे धर्म-भेद शाखागत ;
                    दृष्टि मूलगत मानवता का संबल।

पावन महाकुम्भ में कुम्भ-निकुम्भ कहाँ से आए,
देख विधाता की लीला यह,मन चक्कर-सा खाए; 
                    उच्चैर्घुष्ट बात मन की ,है दल-मल।

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