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स्वयं को बचाइए

स्वयं को बचाइए

फूल माला से सजे मंचों पर लगाकर कुर्सियां ।
अपने विरोधियों को मन भर गाली सुनाइए।।


बँट रही है खुल्लम खुल्ला दनादन रेवड़ियां।
और रेहन कर रहे जमीर, उसे भी ले जाइए।।


वादे पर वादे कर रहे सभी संभव हो ना हो ।
आकर्षक लगे तो आपभी जरूर आजमाइए ।।


फॉर्म भरते दर-दर पर भटक रहे हैं नेतागण ।
घरों में दुबके लोगों को भी जरा समझाइए।।


राजनीति का खेल भी बड़ा दिलचस्प है यारों।
जेब में माल भरकर जयकारा खूब लगाइए ।।


किसी भी तरह मिल जाए सत्ता की चाभी।
वोटर लिस्ट में घुसपैठियों का नाम जुड़वाइए ।।


मोहब्बत की दुकानें अब खुलने लगी है बहुत।
जात-पात में बांटकर लोगों को मत भरमाइए।।


क्या हो रहा है इस देश में नेताजी बताइए।
भारत भूमि को गुलाम होने से पुनः बचाइए ।।


कहाँ तक जाएगी नेताओं की रेवड़ी कल्चर।
अपनी सत्य-निष्ठा डूबने से स्वयं को बचाइए ।।


✍ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

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