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मस्त मलंग बसंत बहार

मस्त मलंग बसंत बहार

रज रज सौंदर्य अनुपमा,
रग रग उत्साह उमंग ।
लोक पटल आमोद प्रमोद,
प्रणय भाव धरा उत्संग ।
उपवन खेत आशा केंद्र,
दुल्हन सम प्रकृति श्रृंगार ।
मस्त मलंग बसंत बहार ।।


जीवन शैली मोहक सोहक,
हर कदम लक्ष्य ओर ।
तन मन पुनीत पावन ,
प्रति पल आनंद सराबोर ।
अंतःकरण नेह स्पंदन,
वैचारिकी शुद्धता अपार ।
मस्त मलंग बसंत बहार ।।


क्रोध घृणा नैराश्य विलोपन
सर्वत्र स्नेह प्रेम भाईचारा ।
वंदन निज संस्कृति संस्कार,
संबंध पट अपनत्व पसारा ।
मृदुल मधुर उत्सविक विहंगम,
परिवेश अंतर खुशियां हजार।
मस्त मलंग बसंत बहार ।।


ज्ञान प्रज्ञान शीर्ष स्पंदन,
गीत संगीत मनभावन।
ललित लास्य लोल तरंग,
राग रंग मुस्कान बिछावन ।
संवाद पटल माधुर्य निर्झर,
अंग प्रत्यंग यौवन उभार ।
मस्त मलंग बसंत बहार ।।

कुमार महेंद्र
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