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क्रांतिवीर रणभूमि के

क्रांतिवीर रणभूमि के

चंदन तिलक लगा माथे पे बढ़ चले महावीर जहां‌।
क्रांतिवीर वो रणभूमि के हाथों में ले शमशीर यहां‌।

आजादी के दीवानों को शीश चढ़ाना आता था।
वंदे मातरम नारों से आकाश गुंजाना भाता था।

बुलंद हौसलों से बढ़ते वो दुश्मन से लोहा लेते थे।
बलिदानी पथ के राही प्राण न्योछावर कर देते थे।

सरहद के रखवाले भारतमाता के वो प्यारे लाल।
शौर्य पराक्रम वीरता से ऊंचा रखते शूरमां भाल।

ओज भरी हुंकार वीरों की बैरी सेनाएं थर्राती थी।
दुश्मन की छाती फटती हाहाकार मच जाती थी।

रणभेरी बजती रणभूमि महा भयंकर समर होता।
हर हर महादेव का नारा शूरवीर महा प्रबल होता।

माटी का कण कण चंदन वीरों की अमर कहानी है।
अमर सपूत भारत माता के लुटा गये जिंदगानी है।

देशप्रेमी मतवाले रणयोद्धा जो राष्ट्र प्रेम की धारा है।
शत शत वंदन है रणधीरों को जिन्हें तिरंगा प्यारा है।

रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनूं राजस्थान रचना स्वरचित व मौलिक है
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