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महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर

महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर

कुमार महेंद्र
अद्य महाकुंभ शुभारंभ बेला,
सर्वत्र उमंग हर्ष उल्लास ।
रज रज स्पंदन सनातन गौरव,
शीर्ष आध्यात्म ओज उजास ।
अमृत स्नान संग श्री गणेश,
साधु संत दर्शन अभिवादन पुरजोर ।
महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर ।।
प्रथम यज्ञ भूखंड धरा अंतर,
संपूर्ण सृष्टि दृष्टि समावेश ।
हिंदू संस्कृति भव्य व्यंजना,
स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश ।
शासन प्रबंध अति उत्तम,
श्रद्धालु वृंद सुगम स्नान छोर ।
महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर ।।
धर्म अर्थ काम मोक्ष फलन,
दान पुण्य अक्षयता बिंदु ।
दुःख कष्ट पीड़ा मूल हरण,
जीवन सुख समृद्ध वैभव सिंधु ।
तन मन पुलकित प्रफुल्लित,
वैचारिकी नैतिक सात्विकता ओर ।
महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर ।।
महत्ता सहस्र्म अश्वमेघ यज्ञ सह,
शतम वाजपेय यज्ञ लाभ समान ।
लक्ष बार भूमि परिक्रमा परे,
सदा श्रेष्ठ एक्य महाकुंभ स्नान ।
हिंदुत्व उद्घोष गगन चुंबी ,
राष्ट्र उत्सविक खुशियां सराबोर ।
महाकुंभ,धर्म आस्था की दिव्य भोर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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