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जानते हैं हम सामने गहरी खाई है,

जानते हैं हम सामने गहरी खाई है,

गिर गये तो मौत निश्चित आई है।
जानबूझकर अनूठा करने की चाह,
ज़िन्दगी को मौत के निकट लाई है।

न बेटे बात सुन रहे, न बेटियाँ ही मानती,
संस्कारों से खिलवाड़ अधिकार मानती।
पढ़ लिख बच्चे खुद को, समझदार बताते,
बेटियाँ भी खुद किसी से कम नहीं मानती।

शिक्षा का अर्थ सबने, नौकरी मान लिया,
परिवार का रोज़गार, निरर्थक जान लिया।
रहने लगे घर के बाहर, सब स्वच्छंद घूमते,
बिन विवाह संग रहना, अधिकार ठान लिया।

मर रही बेमौत बेटियाँ, सब रोज़ देखते,
माँ बाप भी बेख़बर, आँख नहीं खोलते।
छोटी बच्चियाँ जो स्कूल ट्यूशन जा रही,
देर से वापिसी पर उसे, कुछ नहीं बोलते।

किसकी किससे दोस्ती, कोई नहीं जानता,
होटलों में पार्टियों का सच, कोई नहीं जानता।
क्यों हो रही घटनाएँ, सनातन की बेटियों से,
इस रहस्य का उत्तर भी, कोई नहीं जानता।

माता पिता व्यस्त हैं, कमाने की होड़ में,
बच्चे भी व्यस्त, आधुनिकता की दौड़ में।
बिखरने लगे परिवार, संस्कार सिमट गये,
तन्हा दिखने लगे बच्चे, घर गली मोड़ में।

अ कीर्ति वर्द्धन
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