तन्हाईयों से दोस्ती जब से करी है,
मस्तियाँ जीवन में तब से भरी हैं।अकेलापन अब मुझे कचोटता नही,
सोचना यह बात, बिल्कुल खरी है।
व्यस्त रखने लगा हूँ खुद को, आजकल,
मस्त होकर जीवन बिताता हूँ, आजकल।
कुछ समय चिन्तन मनन, बीती बातें याद कर,
रहने लगा हूँ प्रफुल्लित, सोच सब आजकल।
जाता कभी उपवन में, फूल पौधों को देखता,
तितलियों भौंरों का गुंजन, कलियों पर देखता।
याद करता अपना बचपन, उम्र के पड़ाव पर,
खेलते बच्चों में खुद का, बचपन फिर देखता।
बच्चे बड़े हो गये, ख़ुश हूँ बहुत,
निज काम में व्यस्त, ख़ुश हूँ बहुत।
आकर कभी बात करते, कुछ पूछते,
परिवार में महत्व कुछ, ख़ुश हूँ बहुत।
उम्र का चौथा पड़ाव, दायित्वों से मुक्त हूँ,
तीर्थाटन देशाटन करूँ, अध्यात्म से युक्त हूँ।
जो मिला है बहुत कुछ, मृगतृष्णा क्यों करें,
समाज में पहचान अपनी, मैं बहुत संतुष्ट हूँ।
जो हमारे पास उसका, आभार प्रकट करें,
अपेक्षा का त्याग कर, आभार प्रकट करें।
धर्म कर्म अध्यात्म, निज जीवन धारण करें,
प्यार पायें प्यार बाँटें, आभार प्रकट करें।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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