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बचपन की सर्दियाॅं

बचपन की सर्दियाॅं

भयानक होती थीं ये
बचपन की सर्दियाॅं ।
शिशु हेतु दहशतगर्द ,
बचपन की सर्दियाॅं ।।
सर्दियों के भय से ही ,
बच्चे छुपाए जाते थे ।
चल रहीं सर्द हवाऍं ,
सबको बताए जाते थे ।।
भयभीत होते मात-पिता ,
तन पे वस्त्र लादे जाते थे ।
फिर भी बाहर न निकाले ,
सर्दी से भय बहुत खाते थे ।।
सर्द गर्म ज्वर निमोनिया ,
अनेक रोग का ही डर था ।
थोड़ी सी लग जाए ये हवा ,
लोगों का ही बड़ा ये घर था ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण ) बिहार ।
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