बचपन की सर्दियाॅं
भयानक होती थीं येबचपन की सर्दियाॅं ।
शिशु हेतु दहशतगर्द ,
बचपन की सर्दियाॅं ।।
सर्दियों के भय से ही ,
बच्चे छुपाए जाते थे ।
चल रहीं सर्द हवाऍं ,
सबको बताए जाते थे ।।
भयभीत होते मात-पिता ,
तन पे वस्त्र लादे जाते थे ।
फिर भी बाहर न निकाले ,
सर्दी से भय बहुत खाते थे ।।
सर्द गर्म ज्वर निमोनिया ,
अनेक रोग का ही डर था ।
थोड़ी सी लग जाए ये हवा ,
लोगों का ही बड़ा ये घर था ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण ) बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com