शास्त्रानुसार उत्तम संतान प्राप्ति के लिए आवश्यक नियम
सुरेन्द्र कुमार रंजन
वास्तव में खनिज, नदी आदि देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं है अपितु ऋषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी बालक ही देश की सच्ची सम्पत्ति है। इसलिए संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपतियों को चाहिए कि वे ब्रहाज्ञानी संतों-महापुरुषों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्र बनें। साथ ही उत्तम संतान प्राप्ति के नियमों को जान के शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली उत्तम संतान को जन्म दें।
उत्तम संतान प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए। दोनों के बीच मधुर संबंध एवं संतान उत्पत्ति के लिए आपसी सहमति होनी चाहिए। वर्ष में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है।
गर्भाधान के लिए समय :
* ऋतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन ११वीं व १३वीं रात्रि वर्जित है।
* यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ऋतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16 वीं रात्रि एवं यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की 5, 7, 9 या 15 वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त चयन करना चाहिए ।
रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए। सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए। रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए।
पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, पर्व या त्यौहार की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल (त्रयोदशी के दिन सूर्यास्त के निकट का काल). क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वयकाल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं करना चाहिए।
माता-पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है।
दिन में समागम आयु व बल का बहुत हास करता है। गर्भाधान हेतु सप्ताह की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं:
रविवार - रात्रि 8 से 9 बजे एवं 1:30 से प्रातः 5 बजे तक
सोमवार - रात्रि 10:30 से 12 बजे एवं 1:30 से 4 बजे तक
मंगलवार - रात्रि 7:30 से 9 बजे एवं 10:30 से 1:30 बजे
बुधवार - रात्रि 7:30 से 10 बजे एवं 3 से 4:30 बजे तक
गुरुवार - रात्रि 12 से 1:30 बजे एवं 3 से 5 बजे तक
शुक्रवार - रात्रि 9 से 10:30 बजे एवं 12 से 3:30 बजे तक
शनिवार - रात्रि 9 से 12 बजे तक
रात्रि के दिए गए शुभ समय में से भी प्रथम 15 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें।
गर्भधारण के पूर्व कर्त्तव्य :-
दंपति की स्थिति शारीरिक थकान व मानसिक तनाव से मुक्त हो। परिवार में वाद- विवाद या अचानक मृत्यु की घटना न घटी हो। साथ ही स्वेच्छा से समागम के तैयार हों ।
आध्यात्मिकता बढ़े इसलिए दोनों नथुनों से लम्बे, गहरे श्वास लें व भगवत्कृपा, आनंद, प्रसन्नता, ईश्वरीय ओज को भीतर भर के श्वास रोकें, मन में सद्भाव को विचारें। भगवन्नाम जपकर मलिनता, राग-द्वेष आदि अपने मानसिक दोष याद कर फूंक मारते हुए उन्हें श्वास के साथ बाहर फेंकें। गर्भाधान के पूर्व 5 से 7 दिन रोज 7 से 10 बार यह प्रयोग करें। शयनगृह हवादार, स्वच्छ, सात्विक धूप के वातावरण से युक्त हो। कमरे में अनावश्यक सामान व काँटेदार वनस्पति न हो। दंपति सफेद या हलके रंगवाले वस्त्र पहनें एवं हलके रंग की चादर बिछायें। इससे प्राप्त प्रसन्नता व सात्विकता दिव्य आत्माएँ लाने में सहायक होगी ।
रात्रि व समय कम-से-कम तीन दिन पूर्व तय कर लेना चाहिए। निश्चित रात्रि में शाम होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन के सद्गुरु व इष्टदेव की पूजा करनी चाहिए।
दंपति चित्तवृत्तियां परमात्मा में स्थिर करके उत्तम आत्माओं को प्रार्थना करते हुए उनका आवाहन करें : 'हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहीं सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओं ! हम दोनों आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे घर, जीवन व देश को पवित्र तथा उन्नत करने के लिए आप हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें। हम दोनों अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनायेंगे।'
पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में शय्या पर चढ़े। तत्पश्चात् निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति। ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ । भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम् ।।
'हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो। तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो। धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें। तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ।
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें।'
दंपति गर्भ विषय में मन लगाकर रहें।इससे तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज को ग्रहण करती है। विधिपूर्वक गर्भधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है।
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